कृषि एक ऐसा उधोग ,जिस पर पुरा विश्व निर्भर रहता है , विश्व का इकलौता उधोग जिसके ठप होने से लोगों की कोई भी गति विधि सुचारु रूप से नहीं चल सकती । लेकिन यह उधोग हमेशा किसी ना किसी कारणवश चर्चाओं में रहता है। हाल में इसके चर्चा में होने का कारण यह है ,कि जब संपूर्ण विश्व करोना महामारी के प्रकोप से अपने घर में बैठा था तब भारत सरकार ने जून 2020 में एक अध्यादेश लागू कर कृषि कानून पारित किया। ग़ौरतलब है कि अध्यादेश तब लागू किया जाता है जब संसद के दोनों सदनों का सत्र न चल रहा हो और राष्ट्रपति को यह संतुष्टि हो जाए कि ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है ,हालांकि ऐसी कोई भी परिस्थिति नहीं थी मगर फ़िर भी यह अध्यादेश लागू किया गया। पहला सवाल जो किसानों और लोगों के मन में आता है,कि आखिरकार ऐसा क्या है इस कृषि विधेयक अध्यादेश में जो इसे लागू करना लाज़मी हो गया|
इस अध्यादेश में तीन विधेयक है ।
1.कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020.
इस विधेयक के अनुसार सरकार ने छूट दी है कि किसान APMC मंडी के बाहर भी अपनी उपज बेच सकता है। सरकार का कहना है की ' वन नेशन वन मार्केट ' को बढ़ावा मिलेगा और किसान कहीं भी अपना उपज बेच सकता है। किसान के उपज खरीदने के लिए खरीददारों के पास सिर्फ अब पैन कार्ड कि जरूरत होगी। और इस से राज्यों के अन्दर और दो राज्यों के बिच व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और मार्केटिंग, ट्रांस्पोर्टेशन पर खर्च कम होगा। मगर जो राज्य इनका विरोध कर रहे है उनका कहना है कि सरकार APMC का अधिकार राज्यों से छीनने की कोशिश कर रही है। ग़ौरतलब है की यह एक्ट 1950 के दशक में लागू किया गया था । इसके लागू करने का उद्देश्य यह था कि आज़ादी के बाद देश की आर्थिक स्थिति कमजोर थी और किसानों पर इसका असर ज्यादा ही था, जिसके कारण वे कर्जदारों के कर्ज में डूबे थे और वो किसानों पर मनमानी करते थे । इन सब से बचने के लिये राज्य सरकार ने यह एक्ट लागू किया ,जिसके बाद अब किसानों की मजबूरी का फायदा कोई नहीं ले सकता और किसान अपना उपज सिर्फ मंडी में बेचेगी और वहाँ भी सिर्फ सरकार द्वारा अधिकृत किये गये लोग ही खरीद सकते थे। हर राज्य को APMC मंडी के हिसाब से बाँटा गया और इसके लिये चुनाव की व्यवस्था थी। राज्य सरकारों का कहना है कि जिस प्रकार बिहार में APMC एक्ट खत्म करके बिहार के किसानों को हासिये पर धकेल दिया गया उसी प्रकार केन्द्र सरकार चाहती है कि पूरे देश में APMC खत्म हो जाए और APMC पर उसका एकाधिकार हो। ग़ौरतलब है की बिहार में APMC एक्ट 2006 में खत्म हुए थे।
2.कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020
इस विधेयक के संदर्भ में सरकार का कहना है कि इससे किसानों को अपनी फसलों को बेचने के लिए मंडी या बाजार नहीं जाना पड़ेगा। किसान खुद ही कॉरपोरेट कंपनियों से जुड़कर अपने फसल को बेच सकता है। ये कम्पनियाँ फसलों को बोते समय ही उसका अनुबंध कर सकती है तथा किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति करवाना,तकनीकी सहायता,फ़सल स्वाथ्य, ऋण की सुविधा और फ़सल बीमा उपलब्ध कराएगी। आप इसे ऐसे समझे की किसान अपने ही खेतों में मजदूरी करेगा और उसे उसकी कीमत मिलेगी। लोगों का कहना है की सरकार अपने कार्यों को करने में सक्षम नहीं है इसलिये वो किसानों को कॉरपोरेट कंपनियों के हवाले कर रहा है इसके बाद किसान अपने खेतों में अपने पसंद की फसल उपजाने के लिए कॉरपोरेट कंपनियों से पूछना पडेगा।
3.आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
पहली बार यह विधेयक 1955 में सरकार द्वारा लागू किया गया था। इस विधेयक के अनुसार सरकार यह तय करती है की किसी वस्तु का कितना भंडारण किया जा सकता है। उस बक्त सरकार ने इसे काला बजारी रोकने के लिए इसे लागू किया गया था। इसमें सरकार ने संशोधन करके सिर्फ युद्ध और आपदा के समय ही भंडारण का नियमन करेगी । मतलब आप अगर युद्ध और आपदा के अलावा अगर भंडारण करते है तो आपको देखने वाला नहीं है। आप अपने हिसाब से भंडार कर सकते है। इस विधेयक में अनाज,दलहन,तिलहन प्याज आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है और सरकार का कहना है कि अब किसानों को सही मूल्य मिलेगा क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी । मगर कुछ किसानों का कहना है कि सरकार उन्हें कॉरपोरेट कंपनियों के हाथ में बेचने का काम कर रही है।
आखिर इसका विरोध क्यों हो रहा है? क्या है इस विधेयक में जो कुछ किसानों ,कुछ राज्य सरकार आदी जिनको ये रास नहीं आ रहा तो कुछ इसके गुणगान करते थक नहीं रहें । कुछ अर्थ शास्त्री और कृषि विसेस्ज्ञ का कहना है कि कोरोना महामारी के कारण जो देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हुई है, सर्विस सेक्टर तहस नहस हुआ है, उसकी पूर्ति करने के लिये कृषि अर्थव्यवस्था का सहारा लेना चाहती है, जिसके लिये वो इस विधेयक को लागू की है। उनका कहना ये भी है कि सरकार जिस ओपेन मार्केट कि बात कर रही है वो पूरी तरह से विफल हो चुका है। जिसके उदाहरण के तौर पर हम अमेरिका, यूरोप जैसे बडे देश को देख सकते है जँहा ये पिछले 6-7 दशक से लागू है ,कॉन्टैक्ट फर्मींग और कम्युनिटी ट्रेडिंग का सब से बडा उदाहरण है । जबकि वहाँ बडे बडे किसान है जिनके खेत भी बडे बडे है। फिर भी वहाँ सरकार के तरफ़ से 60,000 रुपये सबसिडी मिलता है। फिर भी ये मॉडल फेल है। तो भारत जँहा के किसानों को सबसिडी मात्र 200 रुपये मिलता है वहाँ के किसानों का क्या होगा?उनका कहना है कि सरकार चाहती है कि सरकारी गोदाम में भंडारण कम हो ताकी MSP के लाभार्थी कम हो और भविष्य में ये खत्म हो जाए। ग़ौरतलब है कि MSP किसानों को सिर्फ सरकारी खरीद में ही मिलती है और वो भी सिर्फ भारत के 6% किसानों को ही,और ये भी जरूरी नहीं की APMC मंडी में आपको MSP मिले। मगर सरकारी आंकड़ों के अनुसार पंजाब,हरियाणा जैसे बडे राज्यों के किसानों की संख्या ज्यादा है MSP का लाभ उठाने वालो में। 2019-20 के वितीय वर्ष में हरियाणा और पंजाब में ही सिर्फ 1835 रुपये MSP के हिसाब से 226.56 लाख टन चावल और 1925 MSP के हिसाब से 201 लाख टन गेहूँ,सरकार ने ख़रीदा जिसमें 80लाख 293 करोर रुपये खर्च हुए आप इनके इन बातों पे गौर करने की जरूरत इसलिये भी परती है की सरकार द्वारा अगस्त 2014 में गठित संता कुमार कमेटी के रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार को चाहिए की मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़, पंजाब,हरियाणा और उड़ीसा जैसे बडे राज्यों के भंडारण का कार्य राज्य सरकार को सौप दे ताकी फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत आने बाले लाभार्थी की संख्या कम हो,और इनके भंडारण के लिए प्राइवेट सेक्टर को मौका मिले,और नये विधेयक में ये हो रहा है। जब देश में सभी जगह मंडी नहीं,सभी MSP रेट एक नहीं है, एक किसान एक जगह से दूसरे जगह जाकर अपनी फसल बेच सकता है तो पंजाब और हरियाणा जो ज्यादा विकसित राज्य है उनकी हालात बिगड़ जाएगी और कमाई एक जगह से दूसरे जगह सिफ्ट होगी। क्योंकि अब बिहार जँहा मंडी नहीं है वहाँ का किसान पंजाब में आकर बेचेगा। इसलिये यहाँ के किसान और राज्य सरकार विरोध कर रही है एक सरकारी आंकड़ा के अनुसार पंजाब के किसानों का वार्षिक आय 2लाख 17 हजार 450रुपये है, वहीं बिहार के किसानों की वार्षिक आय मात्र 44 हजार 172रुपये है।
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