Sunday, 11 February 2024

संपादकीय विचार (Editorial Opinion)

केंद्र सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष में, इस बार 5 लोगों को भारतरत्न देने की घोषणा की हैं। केंद्र के इस घोषणा के बाद जहां विपक्ष सरकार पर राजनैतिक महत्वाकांक्षा का आरोप लगा रहा वहीं विपक्ष के कुछ लोग इसे दिल जीतने की बात बता रहें। कुछ ऐसे भी राजनीतिक पार्टियां हैं जो केंद्र सरकार को इस सम्मान के लिए अगली सूची दे रहें हैं। कुल मिलाकर विपक्ष एक बार फिर बीजेपी के इस फैसले पर आंतरिक रूप से बिखरती नज़र आ रही हैं। बात करते हैं बीजेपी के इस पासे की जो आगमी लोकसभा के मद्देनजर फेंकी गयी हैं।


एनडीए में सबसे मजबूत पार्टी होने के बाद भी बिहार में बीजेपी मजबूत नहीं है। उत्तरप्रदेश में बीजेपी अपने सबसे बेहतरीन दौर में है। इसके बावजूद भी राज्य में जातिगत समीकरण को साधने के लिए पार्टी विकल्प की तलाश में है। ऐसा माना जाता है, और आँकड़े भी बताते है कि दक्षिण में बीजेपी की स्थिति कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के तुलना में कमजोर है।

अब लोकसभा के गणित को समझें तो बिहार मे 40 ,यूपी में 80 और दक्षिण में कुल 132 सीटें आती है। दक्षिण के सीटों में सबसे ज्यादा सीट तमिलनाडु 39 कर्नाटक 28,आंध्र प्रदेश 25 और केरल से 20 सीटें हैं। यानि की लोकसभा के कुल 545 सीटों में 252 सीटें। सीटों के मायनों से एक ऐसा नंबर जहां बीजेपी अबकी बार 400 पार के स्लोगन को बखूबी से अंजाम दिया जा सकता है। अमित शाह की इंडिया टुडे को दिए उस साक्षात्कार का वो अंश जहां वो कहते है, "इतना ही जानते हो मुझको" एक बड़ी रणनीति का वो हिस्सा है। जिसका पार पाना इतना सरल नहीं है जितना विपक्ष दिखाने की कोशिश कर रहा है। वो दौर याद करिए जब सत्ता सड़के, बिजली, पानी, और स्थानीय दहशतगर्दों की गुलाम हुआ करती थी। आपको यह बताता चलूँ की आज भी सत्ता इन्ही की गुलाम है, सिर्फ स्वरूप बदल चुका है। अपने छोटे उम्र की कुछ नादानियों के अनुभव और अखबार के पन्नों पर छपे रोज की कहानियों के आधार पर इतना तो पूरे यकीन के साथ कह सकता हूँ कि वास्तविक मुद्दे, जो जनता से जुड़े हुए हैं उनपर राजनीति कभी नहीं हुई, उन पर सिर्फ ढोंग हुआ और शायद आगे भी ना हो।

खैर मुद्दे पर आते हैं। एक वक्त पर जब अन्य राजनैतिक पार्टी उत्तर दक्षिण, पूर्व पश्चिम खेल रही है। बीजेपी के निशाने पर भारत का वो हिस्सा था जहां लोकसभा की सीटें भले कम हो मगर हार या जीत का अंतर बहुत बड़ा होता है। पिछले दिनों जब विपक्ष कभी ना एक होने का नाटक कर रही थी, बीजेपी इन राज्यों में पार्टी को मजबूत कर रही थी। प्रधानमंत्री का दक्षिण दौरा सिर्फ दौरा नहीं था। आप खुद सोचो देश के इस भू भाग पर पिछले 10 सालों में प्रधानमंत्री के राजनीति का कितना सक्रिय हिस्सा रहा ? लेकिन 2024 के जनवरी में लगभग आधा महीना प्रधानमंत्री ने यहीं बिताया। इस दौरान वो कभी दक्षिण में करोड़ों की परियोजनाओं की घोषणा करते दिखे तो कभी समुद्र तटों पर टहलते दिखे। अयोध्या में होने वाले प्राणप्रतिष्ठा में मुख्य जजमान की भूमिका के लिए तमिलनाडु के मंदिरों पूजा पाठ में लीन रहे, तो कभी रोड शो के जरिए विपक्ष को अपने होने का भी आभास कराया। दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास पर जो गायें है, उसका कनेक्शन भी दक्षिण से था। प्रधानमंत्री के दक्षिण दौरे के दौरान ऐसे कई काल्पनिक घटनाएं भी घटी जो सिर्फ दक्षिण में होता है या फिर उसका दक्षिण से अटूट रिश्ता है। कुल मिलाकर बीजेपी ने ये साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जिससे यह बोध न हो कि पार्टी दक्षिण की नहीं है। सबसे बड़ी बात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष यहीं से सांसद भी है।

अब बातें बिहार की, राज्य में बीजेपी ने एक बार फिर सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले ली है। प्रदेश में पार्टी से दो दो उप मुख्यमंत्री है। ये दोनों एक ऐसे उप मुख्यमंत्री हैं जिन्हें मुख्यमंत्री नहीं पसंद है। फिर भी जदयू और बीजेपी ने अपने अपने महत्वाकांक्षा के लिए ,एक दूसरे के दरवाजे खोल दिए हैं । ये दरवाजा कब तक खुला रहेगा, इसको लेकर किसी भी तरह की भविष्यवाणी ठीक उसी प्रकार होगी,जिस प्रकार मुख्यमंत्री कुमार हमेशा गठबंधन बदलने से पहले कहते है कि अब हम यही रहेंगे।

राजनीति के विशेषज्ञ कई बार दावा कर चुकें है कि नीतीश जी की यह आख़िरी चाल थी,जो उन्होंने चल ली। अब वो सिर्फ़ एक मोहरा है। लेकिन मैं पूरी तरह से य़ह नहीं मानता। राज्य में मुख्यमंत्री कुमार की जरूरतें अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुयीं है। क्योंकि ऐसे किसी भी समीकरण की चर्चा फिलहाल तो नहीं दिख रहा है जिसमें बीजेपी और आरजेडी अकेले दम पर उस मैजिक नंबर को छु ले। जहां सत्ता की चाभी मिलती है। जातिवाद की राजनीति का सबसे बड़ा अखाड़ा भारतीय संसद में अपने 40 पहलवानों को भेजता हैं और बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि राज्य से ज्यादा संख्या में उसके विरोधी पहलवान संसद पहुँचे। हालांकि लोकसभा के चुनावी सर्वे में बीजेपी को नंबर ज्यादा मिल रहे हैं। लेकिन बीजेपी किसी भी प्रस्थिति में विपक्षी पार्टियों रियायत नहीं देगी।

सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों के साथ लोकसभा की गणित बनाने और बिगाड़ने का दंभ भरने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में इस बार भी ऊंट बीजेपी के तरफ ही बैठती नज़र आ रही है लेकिन ओपिनियन पोल के रिज़ल्ट के अनुसार प्रदेश में मिल रही 72 सीटों से पार्टी खुश नहीं लग रहीं। उसे 72 से कहीं ज्यादा की तमन्ना है। ऐसे में अब देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि पार्टी गठबंधन के लिए क्या निर्णय लेती है। हालांकि पार्टी ने अपना पासा फेंक दिया है और नंबर भी गोटी लाल होने की संकेत कर रहीं हैं लेकिन राजनीति में छोटा वक्त एक लम्बा अन्तराल होता है।

महाराष्ट्र जो कि लोकसभा में सीटों के हिसाब से दूसरा बड़ा राज्य है यहां विपक्ष बराबर दिखाई दे रहीं हैं। लेकिन आंकड़ो में ज्यादा अंतर नहीं होने से कोई ख़ासा समीकरण नहीं दिख रहा।

अब गौर करने वाली बात प्रधानमंत्री द्वारा सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाने वाला देश की सर्वोच्च सम्मान के लिए 2024 में जिन लोगों का चयन किया गया है। उनकी राजनीतिक पृष्टभूमि है, जो वर्तमान राजनीति में वोटों को साधने का एक बढ़िया तरीका है। जहां कांग्रेस अपने परिवारवाद दिल्ली में वर्चस्व कायम रखने की परंपरा में पिछड़ गया। कहते है राजनीति में समय मायने रखता है और य़ह कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी ने सही समय पर सही हथौड़ा मारा है।

• कर्पूरी ठाकुर- पूर्व मुख्यमंत्री (बिहार), दलित नेता
• लालकृष्ण आडवाणी-पूर्व उपप्रधानमंत्री ,केंद्रीय मंत्री, बीजेपी और संघ के कद्दावर नेता जिन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को राजनैतिक स्वरूप प्रदान किया।
• चौधरी चरण सिंह - पूर्व प्रधान मंत्री, उत्तरप्रदेश, जाट नेता
• श्री पीवी नरसिम्हा राव गारू-पूर्व प्रधानमंत्री, तेलुगु नियोगी ब्राह्मण, आंध्रप्रदेश
• डॉ. एमएस स्वामीनाथन- भारत में हरित क्रांति के जनक, तमिलनाडु

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