Saturday, 6 February 2021

आम बजट 2021-22

 


सोमबार 1फरवरी को भारत के वित मंत्री के द्वारा लोकसभा  में बजट 2021-22 पेश किया गया। इस बजट की खासियत यह रही कि इसमें भारत को आर्थिक रूप से विकसित करने के जिस तरीके को अपनाने की बात कही गई है वो आत्मनिर्भरता है। बजट के अनुसार  देश के सभी नागरिकों को चाहे वो किसी भी वर्ग के हो उनके विकास की बात किया गया है। यह बजट इसलिये भी खास है क्योंकि इसके अनुसार भारत को अपने लिए किसी के आगे हाथ फैलाकर कुछ मांगना नहीं पड़ेगा और कोरोना के कारण सकल घरेलू उत्पाद के दर का नाकारात्मक हो जाने के बाद  बजट का सकारत्मक स्वरुप एक शुभ संकेत है और भारत अपने आत्मनिर्भर बनने के सपनें से महज एक कदम दूर है। और उसका यह सपना पुर्ण रूप से साकार होने वाला है। बजट में कृषि,स्वाथ्य,शिक्षा , परिवहन,और टैक्स पर ज्यदा ध्यान दिया गया है। जब पुरा देश पिछ्ले दिनों कोरोना महामारी के कारण परेशान था और GDP के पुराने आंकड़ों का नाकारात्मक हो जाने के बिच एक सकारत्मक बजट का इन्तज़ार तो लाजमी भी था और हम इन्तज़ार कर  भी  रहे थे।

बजट में सकारत्मक पहलू क्या थे।

अगर हम वर्ष 2020-21के बजट को देखें तो हम पायेंगे की बजट मे राजकोषीय घाटा GDP के लगभग 3.5% था। और संशोधित अनुमानों के अनुसार यह एकदम से बढकर 9.5% हो गया और आगामी वर्ष 2021-22 मे इसे 6.8%के बराबर आकलित किया जा रहा है। अगर हम इसकी तुलनात्मक अध्ययन करे तो पायेंगे की यह आंकड़े कम है। मगर अगर हम वर्तमान और बीते परिस्थिति को नजरअंदाज ना करे तो हम शायद हम आलोचना करने से पहले सोचेंगे जरुर।सरकार के पास समस्याएँ है कि किस प्रकार देश के मौजूदा हालात को बेहतर किया जाय।


 कोरोना महामारी के कारण स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था,इंफ़्रास्ट्रक्चर,आयत-निर्यात आदी में उत्पन्न परेसानी को दूर करने के लिए और पुनिर्मण हेतू प्रयास किया जाना भी एक कारक हो सकता है इनके आंकड़ों में कमी आनें की। स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार द्वारा 2.8लाख करोड़ रूपये का खर्च करने का दवा एक सफल कदम हो सकता है। जिसका उदाहरण सरकार ने पिछ्ले दिनों में कोरोना टिका का पुरे देश में एक-एक कर उपयोग और अलग-अलग देशों में निर्यात कर,पेश कर चुका है। 


 सडक एवं परिवहन में 1.8 लाख  करोड़,रेलवे के लिए 1.7लाख करोड़,वितीय संस्था के 20 हजार करोड़ रुपये, एबं आत्मनिभर भारत के विकास के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान एक सफल कदम हो सकता है। इसके अलावा सरकार ने पिछ्ले दिनों  उठ रहे विनिवेश मे विवादास्पद कदम को खत्म करने का प्रयास भी किया है।विमा क्षेत्र में FDI को 49%से75% भी किया है। 



कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि बजट का जैसा अनुमान लगाया जा रहा था बजट उस पर लगभग लगभग खड़ा उतरा है। बजट में महामारी को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। और जहाँ जँहा इसने जितना कदम बढाया उसके लिए सरकार ने उतना प्रावधान किया। बजट में कुछ नये योजनाओं को भी जगह दी गई। महामारी के कारण सरकार ने  बिगड़ी हूई अर्थवयवस्था को सम्भालने का पूर्ण प्रयास किया। और देश के सभी नागरिकों को विकसित करने के लिए अलग अलग व्यवस्थाएं करने की कोशिश की। अब देखना यह होगा कि सरकार अपने इस योजना मे कितनी सफल होती है और देश को विकसित करने के लिए उठाये गए कदमों में कितनी सफल होती है। 

बजट में नकारात्मक पहलू। 

अगर हम नाकारात्मक  पहलू को देखें तो बजट में साफतौर पर देखा जा सकता है की सरकार ने महामारी का फायदा उठाने मे किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी। अर्थवयवस्था में आयी मंदी के कारण सरकार को चाहिए था कि वो वो ऐसे क्षेत्रों में खर्च करे जँहा रोजगार के अवसर आसानी से उपलब्ध कराये जा सकें। मगर सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इस बजट मे शिक्षा,कृषि आदी क्षेत्रों मे निवेश की जाने की बात की गई है,गौरतलब है कि इन क्षेत्रों मे रोजगार आसानी से उप्लब्ध नहीं होते।प्रश्न उठता है कि  इन विषयों पर सरकार किस प्रकार रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाएगा इसका कोई भी स्पस्टीकरण सरकार ने ना तो  बजट में दिखाया और ना ही  इस पर कोई प्रतिक्रिया दिया। 

अगर हम यह कहें कि आम आदमी के लिए सरकार ने एक बार फिर से अपनी पुरानी परम्पराओं का पालन किया तो हम शायद गलत हो सकतें है। मगर बजट के कई हिस्सों के द्वारा इसका पुर्ण समर्थन इसकी पुष्टि भी कर रहे है। दरअसल सरकार का मानना है कि उसने कोरोना महामारी के कारण देश में व्याप्त मंदी को खत्म करने के लिए भरसक प्रयास किये है। और अगर यह योजना सफल हो गई तो भारत कोरोना के साथ साथ अर्थवयवस्था पर भी विजय प्राप्त कर लेगा। मगर बजट इस पर अपनी कोई भी प्रतिक्रिया देने से बचने की कोशिश मे दिख रही है। कोरोना ग्रोथ के कारण रोजगार,और वेतन मे कटौतियों जैसे बडे समस्या को सरकार ने इतनी सहजता से लिया की उसने बजट की बात तो छोड़ दे,अपने भाषण में भी इसका जिक्र करना उतना लाजमी नहीं समझा जितना कि आगामी चुनावों वाले राज्यों में सडक मार्ग, हाईवे, पॉवर ग्रिड आदी लगने का जिक्र कर उसे आवश्यक लगा।


 सरकार ने अपने आगामी चुनावों मे विजय प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास करने की कोशिश की और जितनी कर सकती थी की भी। यह एक आरोप हो सकता है मगर सरकार की चुपी और अन्य राज्य जँहा इस तरह की सुविधाएँ की जरूरत है उनकी अनदेखा करना इस आरोप के सबूत हो सकते हैं। सरकार ने ग्रमीण रोजगार गारंटी योजना को ना बढ़ा कर, कचे तेल,पैट्रोल,कस्टम ड्यूटी,आदी के कीमतों में इजाफ़ा कर इस बात का पुर्ण सर्मथन किया है कि आम आदमी सिर्फ़ जनगणना,वोट बैंक,और अखबार में बजट कीखबर पढ़ने के लिए रह गया है। और भी अन्य ऐसे उदाहरण है जो यह भी कहतें हैं कि सरकार से आपकी मित्रता आपके विकसित होने का सबसे बड़ा और एक मात्र मार्ग हो सकता है।

अगर हम सरकार के पिछले दिनों देश के विकास के लिए उठाये गए मुद्दे,लागू किये गये योजनाएँ,आदी को देखें तो हम उन मे एक चिज ऐसा मिलेगा जिसका जिक्र सरकार ने प्रतेक जगह की है और वह है आत्मनिभर। मगर बजट मे सरकार शायद यह भुल गई या फिर कोई अन्य तरीका अपनाने की कोशिश में दिखी। और आत्मनिभरता को सफल बनाने के लिए देश के वितीय संसाधनो पर विदेशी प्रभुत्व बढाने और विदेशी निवेश को बढाने के लिए कदम उठाने से बाज नहीं आई। अनेक ऐसे भी उदाहरण है जो इसकी पुष्टि करते हैं की सरकारऔर उसके पूँजीपति मित्रों के लिए यह बजट नये तिजोरियों की खरीदारी करने के लिए विवस करती है।

संपादकीय विचार (Editorial Opinion)

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