Sunday, 4 April 2021

कोरोना और शिक्षा

 



कहा गया है चर सँसार का नियम है, और हमारे आसपास इसका कई उदाहरण है। 17 नवंबर 2019 को इस शोर मचाती दुनियाँ को शांत करने के लिए इस नए दौर की पहली पहचान मिली थी। मगर आने वाले इस भयंकर बिमारी की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि ये सम्पूर्ण विश्व को लाचार और बेबस कर देगा। फ़िर भी विस्व इसे अनदेखा कर अपनी मनमानी में व्यस्त था। जिसका परिणाम यह हुआ कि धीरे धीरे सम्पूर्ण विश्व इसकी चपेट में आ गया। अगर भारत की बात करें तो 27 जनवरी 2020 को भारत भी इससे अछूता नहीं रहा और पहले मामले को देखने मिल गया। लेकिन हम जस की तसवीर बन रहे थे, और मामले बढ़ते जा रहे थे। लेकिन एक बात थी की तुलनात्मक रूप से हम अभी बहुत पीछे थे। फिर भी हमारे स्वाथ्य, समाज और देश की परिस्थिति ना बिगड़े इसके लिए 24 मार्च 2020 को इस महामारी के कारण भारत ने सम्पूर्णीकरण की गयी। 




कोरोना महामारी के कारण हर कोई अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत है। सरकार के द्वारा इससे बचने के लिए दिशा निर्देश भी किए जा रहे हैं। लोग पालन भी कर रहे हैं। फिर सबल आता है की जब देश मे तालाडाउन हुआ था तो सक्रीय मामलें ना के बराबर थे। और देश बंद था, आमेशी बंद था। ट्रेन, दुकान, मॉल, पर्यटन स्थल, स्कूल कालेज, आदी सभी प्रकार की गतिविधियों पर रोक थी। फ़िर सक्रीय मामलों में विर्धी कैसे हो गए। मतलब कुछ तो ऐसे लोग थे जो इस आपदा को आत्म हित में अबसर में बदल रहें थे। कुछ ऐसे लोग थे जो इससे बचने के साथ औरतों को मजबुत बनाने के लिए अग्रसर थे तो कुछ लोग अन्य लोगों को समाजिक आर्थिक रूप से तोरने का काम कर रहे थे। अगर हम देखें तो तीन तरह के लोग इस आपदा से लड़ रहे थे। एक स्वार्थ की पूर्ति के लिए, दुसरा समाज को बचाने के लिए, और तीसरा जिसके पास देखने के अलावे कोई अन्य बिकल्प नहीं था तो वे सिर्फ देख रहे थे। लेकिन लड़ हर हर कोई रहा था।




यह पैचकरण एक प्राकृतिक अवकाश के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिसे हम चंद दिनों का मेहमान समझ रहे थे, वह घर जमाई बन चुकी है। इस के करतूतों का हर कोई गवाह है लेकिन आज हम बात करते हैं शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान का। हर क्षेत्र में इसका प्रभाव देखने को मिला है लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में इसकी भुमिका कुछ अलग रही है। अगर हम तुलनात्मक रूप से देखें तो शिक्षा में यह नोकसान ज्यदा है। कुछ लोगों का तर्क हो सकता है की हमनें शिक्षा का डिजिटलीकरण करके उसकी भरपाई करने की कोशिश की है। लेकिन यह पुष्य शनि नहीं है। अधिकांश छात्रों के पास इसकी उपलब्धता नहीं है जिनके पास है तो इंटरनेट की समस्या है। जिसके कारण इस क्षेत्र में कोरोना के कारण आर्थिक और शैक्षणिक क्षति दोनो देखने को मिली है। कोरोना के घटते मामलों ने इसे एक बार भी उठने का मौका दिया, लेकिन वो सफल नहीं हो पाए। और वर्तमान के परिस्तिथियों के कारण पुन: एक बार फिर से कुछ राज्यों में बंद कर दिया गया है। कुछ छात्रों का कहना है कि सरकार के इस फैसले ने उनके भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। केक्योंकि बिना पढे, और एग्ज़ाम हेतु अगर उन्हें अगली कक्षा में प्रवेश मिलता है तो उच्य शिक्षा के दौरान उन्हें कठिनाईयों का समाना करना चाहिए। कोरोना महामारी के कारण पहलें से ही उनका एक साल वर्टिज्म हो चुका है



अगर हम यह कह रहे हैं कि आने वाले समय शिक्षकों और छात्रों के लिए चुनौतियों भरा होने वाला है। तो हम शायद सही भी है लेकिन वर्तमान की परिस्तिथियों को नकारना एक गलत कदम हो सकता है। क्योंकि कल क्या होगा वह हमारे आज पर निर्भर करता है। और यह महामारी हमारे वर्तमान को मिटाने की कोशिश में लगी है। जो शिक्षा व्यवथा को हासिये पर धकेलने के लिए पर्याप्त है।अगर अभी भी सरकार या शिक्षण संस्थान कोई ठोस कदम नहीं उठाते हैं तो  हम जितने पिछे है उसे भी पीछे जा सकते  है। सरकार कोरोना से पहलें डिजिटल दुनिया की बात कर रही थी और हमनें उसकी झलकियां अभी से हीं देख ली हैं। इस बातों को विशेष तौर पर पर देखा जा सकता है की संसाधन के अनुपलब्धता के कारण सिर्फ़ इसकी कल्पना करना आसान है। क्योंकि ऐसे देश जँहा केवल 34% लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और खराब बुकिंग के कारण इनकी संख्या केवल 41% रह जाती है जो इसका नियमित उपयोग कर पाते है। एक आंकड़े से पता चलता है कि भारत में ऐसे उपकरण जो हैं हमे इंटरनेट से जोडते हैं उनकी संख्या भी कम है। उदाहरण के लिए स्मार्ट्फोन्स धारक केवल 24% है। हालांकि ये आंकड़े 2018 के है। 


अब हम एक ऐसे पहलू की बात करतें हैं जो इससे भी महत्वपूर्ण है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के 2016-17 के रिपोर्ट के अनुसार विधालय जाने वाले बच्चों की संख्या 65% है जो लगभग 11.3 करोड़ है इनमें से ज्यादातर वो आते हैं जो मध्यम वर्गीय परिवार से है। उनके माता-पिता योजना या छोटी मोटी नौकरी करतें है। इनकी आर्थिकी स्थिती समान्य परिस्तिथियों में भी लचर होता है तो इस महामारी में तो कहने की बात ही नहीं है।और इन कारणों से लगभग 2.4 करोड़ बच्चों की शिक्षा से रिस्ता खत्म होने की सम्भावना है। UGC की माने तो भारत में 950 विश्वविधालय है जिसमें 361 निजी है। जो इस कोरोना महामारी के कारण अपने अस्तित्व को तरस रहा है। क्योंकि की हरेक में सा उपिधा उपलबध नहीं है और लगभग 94% छात्र छात्रा इसके पास होने या सभी प्रकार के उपिधा के अनुपस्थितता के कारण कारण Inf है। और उनके ड्राप आउट की सम्भावना बढ़ गयी है।




अगर आंकड़ों और जमीनी हकीकत की बात करें तो हम और भी अचंभित रह जायेंगे। यह महामारी ने लडकियों के शिक्षा पर भी बुरा प्रभाव डाला है। हम देखते है बहुत कम ऐसे माता पिता है जो अपने लडकी को पढ़ने के लिये स्कूल-कालेज भेजते है।जिसके अनेक कारण है। मगर एक कारण जो स्वाथ्य से  जुरा है वो ज्यदा प्रभाव डालेगा। घरेलू हिंसा, समाजिक कुरीतियों, आदी इस महामारी के कारण बढ़े है जो इनके शिक्षा को एकदम से प्रभावित करेगी।




उदाहरण के तौर पर यह कहा जा सकता है की विश्वगुरु भारत आज विश्व में अपनी पहचान खोज रहा है। जँहा की विश्वविद्यालय अपने नाम की डंका औरों से बजबजाती थी वो आज अपने खामोश हो चुकी है। कोई इसके आसपास नही था मगर आज ये किसी के आस पास नहीं है। ऐसे में भारत की शैक्षणिक भविष्य क्या होगा? ये सबसे बड़ा सवाल है।  जिसका उत्तर हमारे पास है।मगर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए हम सिर्फ अपने अतीत का गुणगान करते जा रहे हैं। यह एक सोचने पर मजबूर करने वाली बात है। मगर हम ऐसा नहीं करेंगें क्यों की ये समाज हित की बात  होगी।  स्वार्थ हित और समाज हित के बिच समाज हित का चुनाव कम देखने को मिलता है।

संपादकीय विचार (Editorial Opinion)

केंद्र सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष में, इस बार 5 लोगों को भारतरत्न देने की घोषणा की हैं। केंद्र के इस घोषणा के बाद जहां विपक्...