वैक्सीन किसी भी व्यक्ति या प्राणी के शरीर को बिमारियों,वायरस,या किसी प्रकार के संक्रमण से लड़ने के लिये तैयार करती है।यह शरीर में एंटीबॉडी बनाने का काम करती है।जो शरीर के इम्यून सिस्टम को बढ़ाने का काम करती है,ताकी यह बाहरी हमले के लिए यह त्यार रहें। इसका निर्माण उस जीव के कुछ कमजोर और निष्क्रिय अंश के द्वारा त्यार किया जाता है जो जीव उस बिमारी या संक्रमण के लिये उतरदायी होते हैं।किसी भी रोगाणु के शरीर के पुरे हिस्से हानिकारक नहीं होते हैं। बल्कि उसके शरीर के कुछ हिस्से ही हानिकारक होते हैं।उदाहरण के लिए कोरोना वायरस का एनटीजण उसके शरीर का हानिकारक हिस्सा होता है। और जो हिस्से हानिकारक नहीं होते उसी की मदद से वैक्सीन बनाया जाता है।जिसे अलग शब्दों में एंटीबॉडी भी कहा जाता है। अगर आसान शब्दों में समझा जाय तो वैक्सीन का कार्य यह है की हमारे शरीर में नकली एनटीजण देकर या हल्का फुल्का एनटीजण जो अत्यधिक नुकसानदायक ना हो,देकर हमारे शरीर में पहले से ही एंटीबॉडी त्यार कर ले ताकी जब वायरस का असली हमला हो तो हमारा शरीर उससे लड़ने के लिए त्यार रहें।
अमेरिका के सेंटर ऑफ डिजीज एंड प्रिवेंशन (CDC) का कहना है कि वैक्सीन बहुत ज्यदा शक्तिशाली होते हैं। क्योंकि ये दबाओं के विपरित काम करते है। मतलब की यह किसी बिमारी का इलाज या उसे ठीक नहीं करती है बल्कि उसके संक्रमण और उसके कारकों को ही ख्तामा करती है ताकी यह सिर्फ़ खत्म नहीं हो अपितु इसका फैलाव ही नहीं हो और आसानी से किसी बिमारियों,संक्रमणों आदी से निजात मिल सके।
डबल म्यूटेंट वेरीयएंट क्या है?
जैसे जैसे कोरोना वायरस अधिक से अधिक लोगों में फैल रहा है,उसके अलग अलग रुप देखने मिल रहे है। जो की और भी ज्यदा खतरनाक हो रहा है। जब इसके बारे में रिसर्च की गई तो पता चला कि अलग अलग देश में "डबल म्यूटेंट वेरीयएंट" का पता चला है। जो वायरस के प्रारंभिक स्वरुप से ज्यदा खतरनाक हो रहा है। उदाहरण के तौर पर अगर हम भारत की बात करें तो केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के द्वारा जारी एक आकड़ों में बताया गया की 18 राज्यों में एक से ज्यादा "वेरीयएंट ऑफ़ कंस्नर्स"(VOCs ) पाये गये है। मतलब की भारत के अलग अलग हिस्सों में वायरस के अलग-अलग प्रकार देखने को मिला है।जिसमें ब्रिटेन,दक्षिण अफ्रीका,ब्राजील,और भारतीय वेरीयएंट काफी मात्रा में देखने को मिला है जिसकी संख्या 15 से 20% मामलों में पाया गया है। इसकी खास बात यह है,जो कि चिन्तनीय है वह यह की यह पहलें किसी किस्मों से मेल नहीं खाता है। हालांकि अभी तक इसके कारण संक्रमण में अत्यधिक उछाल नहीं देखने को मिला है। फिर भी इसपर अधययन जारी है।
इसी प्रकार के अलग अलग देशों में अलग-अलग वेरीयएंट देखने को मिला है जो एक समय के बाद अपने भयंकर रुप मे आकर तबाही मचा रही है। जिसका उदाहरण अमेरिका ,ब्राजील और ब्रिटेन है। इनसे बचने के लिए एक मात्र उपाय वैक्सीन है।
हालांकि डबल म्यूटेंट वेरीयएंट वायरस का वो रुप है जिसमें वायरस अपने जीनोम में दो बार बदलाव करता है। गौरतलब है कि वायरस में वेरीयएंट के रुप में बदलाव होना आम बात है।यह उसका पृकृतिक गुण है।
जब भी कोई महामारी या बिमारी आचनक से हमला करती है तो सुरुआत के दीनों में यह मजबूत ना होने के बाद भी भारी तबाही करती है।क्योंकि इससे कोई परिचित नहीं होता है। मगर धीरे धीरे इसके रोकथाम के लिए अलग प्रयास किये जा रहें है।जिससे उससे सम्बधित बिमारियों,रोगाणुओं पर काबू पाया जा सकें। जिसमें इसके रोकथाम के लिए अलग अलग दवा,परहेज़ आदी का उपाय करते है। मगर यह कारगर साबित होता है। इसके निवारण के लिए एक तरफ उस संक्रमण से लड़ाई जारी रहती जिसमें लोगो को सुरक्षित रखने के लिए के आवश्यक कदम उठाया जाता है जो पूर्ण रूप से प्रभावी नहीं होता क्योंकि ऐसे उपायों में एक तरह से हम बीमारियों को अपने फैलाव के ना चाहतें हुये भी रास्ता दे रहें होते है। क्योंकि हम किसी परेसानी से भाग कर उससे निजात तो नहीं पा सकतें है। इसलिये इसके दूसरें पहलुओं पर सरकार,जनता,बैज्ञानिक आदी ज्यदा जोर देते हैं। जिसमें इस से लड़ने के लिए इसके दवा या टीके का निर्माण जल्द से जल्द करने पर जोर दिया जाता है। इसके लिये पहलें इसके दवा या टीकाएँ को विकसित कर अलग अलग परिस्तिथियों में,अलग-अलग जीवों पर इसका परिक्षण किया जाता है। तदपस्चात इसका उपयोग किसी भौगोलिक सीमाओं में रहने वाले लोगों पर किया जाता है। आदी प्रक्रिया के बाद अगर सकारत्मक परिणाम मिलती हैं तभी इसके समान्य तौर पर उपयोग की मंजूरी मिलती हैं।किसी भी वैक्सीन निर्माण की प्रकिया विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा निर्धारित मानकों के आधार पर होती है।मगर पृथ्वी पर कहीं भी ना तो एक समान जलवायु है और ना ही भौगोलिक बनावट,परिणाम स्वरूप किसी भी प्रकार के जीव हरेक जगहों पर खुद को वहाँ के वातावरण के साथ जीवित नहीं रख पाते हैं। इसलिये जब टीके का निर्माण होता है। तो अलग अलग परिस्तिथियों के कारण इसका प्रभाव कम ज्यदा है। परिणाम स्वरूप किसी खास टीके की मंजूरी किसी खास जगह पर ही मिलती है। और इनका निर्माण अलग अलग तरीके से किया जाता है। जिसमें कुछ निम्न है।
1.लाइव वैक्सीन :-
इसका निर्माण प्रक्रिया कि सुरुआत एक वायरस से होती है। जो हानिकारक तो नहीं होती मगर उसका जेनिटीक कोड दूसरें से मिलता जुलता रहता है। ये शरीर में जाकर शरीर की कोशिकाओं के साथ अपनी संख्याओं को बढ़ाती है। जो शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को बढाने का कार्य करती है। और ये तंत्र सक्रिय हो जाते है। इसमें उपयोग होने वाले वायरस शरीर को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते। और जब शरीर में हानिकारक एंटीजन का हमला होता है तो ये वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने में मदद करतें है।और उससे होने वाले नुकसान से बचाते हैं।
2. इनएक्टिवेटेड वैक्सीन:-
इस वैक्सीन में वायरस के वो भाग होते है जो इनएक्टिवेटेड होते है। इसमें अलग अलग प्रकार के कई सारे वायरल प्रोटीन होते है। इसमें मृत पैथोजन (रोगजनक) होते है। ये शरीर में जाकर अपनी संख्या नहीं बढ़ा सकतें लेकिन शरीर के लिये ये बाहरी होते हैं जिसके कारण शरीर एंटीबॉडी विकसित करना प्रारंभ कर देता है। और हमारा शरीर जीवित वायरस के लिए त्यार हो जाता है। और हम इससे लड़ने के लिए पुरी तरह सक्षम हो जाते है।
3. जीन बेस्ड वैक्सीन:-
इस तरह के टीके की सबसे बड़ी बात यह होती है कि यह इसका उत्पादन तेजी से किया जा सकता है। इसमें वायरस के DNA या MRNA की पुरी जेनेटीक संरचनाएँ मौजूद रहती है। इसके पैथोजन में से सारी जेनेटीक संबंधित जानकारी महत्वपूर्ण संरचनाएँ के साथ नैनोपार्टिकल्स में पैक कर शरीर की कोशिकाओं तक पहुंचा दिया जाता है। ये नुकसानदायक नहीं होते हैं। इन जानकारियाँ प्राप्त करने के बाद शरीर एंटीबॉडी त्यार करती है और अन्य रोग प्रतिरोधक तंत्र को सक्रिय कर देती है। जिससे महामारी को खत्म कर दिया जाता है।
अलग अलग देशों में उपयोग होने वाले अलग अलग वैक्सीन .....
1.मॉर्डना वैक्सीन:-
इसको MRNA की तकनीक पर विकसित किया गया है। यह 94.1% प्रभावी है। अपने तीसरे चरण की ट्रायल के बाद इसे अमेरिका,कनाड़ा,ब्रिटेन,और यूरोपीय संघ ने उपयोग के लिए मंजूरी दिया गया है।इसकी दो खुराकें देनी पड़ती है जिसमें पहली और दूसरी के बिच 28 दीनों का अंतर होता है फ्रिज में रख दिया जाय तो इसे 30 दीनों और -20°में यह 6 महीनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
2.फ़ाईजर-वायोएनटेक:-
इसका निर्माण भी MRNA के तकनीक पर विकसित किया गया है। यह 95% प्रभावित है। इसका भी तीसरे चरण का ट्रायल पुरा हो चुका है। जिसके बाद अमेरिका,कनाड़ा ,ब्रिटेन , पनामा और सिंगापुर में इसकेइस्तेमाल की मंजूरी दे दी है। इसमें भी दो खुराकें दी जाती है। जिसमें अंतर 21 दीनों का होता है। इसको सुरक्षित रखने के लिए अधिकतम तापमान 75°है।
3.ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन:-
इस वैक्सीन को वायरल वेक्टर तकनीक पर विकसित किया गया है। इसके भी तिनों चरण का ट्रायल पुरा कर लिया गया है। और ब्रिटेन,अर्जेंटीना,भारत,और मैक्सिको ने इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है। इसके भी दो खुराकें है जिसमें चार हप्तों का अंतर है। इसे 2° से 8°तापमान पर सुरक्षित रखा जा सकता है।
4.जॉनसन एंड जॉनसन:-
यह भी वायरल वेक्टर तकनीक पर ही आधारित है। इसकी अभी तक मात्र दूसरें चरण की ट्रायल पूरी हुयी है।और तीसरे ट्रायल की जानकारी अभी साझा नहीं किया गया। इसलिये अभी तक इसके किसी भी आकड़ों की पुर्ण प्रमाणिक जानकारी नहीं है।
5.गमलेया इन्स्टीट्यूट की वैक्सीन:-
इसे भी वायरल वेक्टर तकनीक पर विकसित किया जा रहा है। इसकी तीसरे चरण की ट्रायल चल रही है। दुसरे चरण के ट्रायल के आंकड़ों के अनुसार इसे 91.4% प्रभावी बताया जा रहा है।
6.सिनोफार्म वैक्सीन:-
यह वैक्सीन निष्क्रिय वायरस तकनीक पर अधारित है।और फिलहाल इसके तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है। और चिन के अलावे संयुक्त अरब अमीरात,बहरीन,मिस्र,और जाईन ने इसके इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी है।इसमें दो खुराकें है जिसका अंतर तीन हप्तों का है। इसे सुरक्षित रखने के लिए 2°से8°तापमान निर्धारित किया गया है।
तुलनात्मक रुप से सभी वैक्सीन समान रूप से कारगर साबित होते हैं। मगर कुछ लोग इसके प्रभावी आंकड़ों में अंतर के कारण इसपर सबाल उठाते हैं। उनका मानना है कि जिसका प्रभावी आंकड़े ज्यादा है वो उतना ज्यादा कारगर है।जो की सही नहीं है। क्योंकि सभी वैक्सीन का परिक्षण एक समान परिस्तिथि या भौगोलिक स्थिति में नहीं किया गया है। इसे अलग-अलग तरीके से, अलग-अलग तकनीक के आधार पर विकसित किया गया है। इसे अलग अलग समय में अलग अलग लोगों द्वारा, वायरस के अलग अलग वैरीएंट पर ट्रायल किया गया है। जिसके कारण इसके अलग-अलग आकड़े मिले हैं।इसिलिए किसी भी प्रकार के वैक्सीन पर सबाल उठना सही नहीं है।