गुलामी के 7 दशक बाद आज हम आजादी के 75वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं। चुकीं गुलामी का वह मंजर हमने नहीं देखा और अतीत के पन्नों में जो कहानियाँ बयां है, उसमें कुछ को छोड़कर सब में स्वार्थ की महक आतीं है और एक पन्ना दूसरे को गलत साबित करने को बेताब रहता है।ऐसे में सवालों का एक बहुत बड़ा पिटारा हर भारतीय पास है मगर किससे पूछें इसका जवाब किसी के पास नहीं है। देश की कहानियों में अतीत का एक सुंदर सा चित्र, वर्तमान के परिस्थितियों पर क्या कुछ नहीं कहती? मगर अपने अंदर की कमियों को देशभक्ति की चोला पहन कर हर कोई छुपाया हुआ है। और एक दूसरे को उँगली दिखा रहा है। जनता उसे वोट कर रहीं है जिसने पिछले चुनाव में उससे झूठ बोला था। नेता इसलिए देश को लूट रही है क्योंकि उसे लगता है जनता ने उसे खजाने का मालिक बना दिया है, और मालिक तो कुछ भी कर सकता है। अभिनेता, कर्मचारी, छात्र, शिक्षक, लेखक, श्रोता, दर्शक, डॉक्टर, अभियंता, वकील, पत्रकार आदि हर कोई अपने स्वार्थ की पूर्ती के अपने हिसाब से काम कर रहा है।और देशभक्ति की परिभाषा अपने हिसाब से तय कर रहा है।
यहाँ तक कि लोकतंत्र के चार स्तम्भ जिसे देश की रक्षा करने, कानून व्यवस्था का पालन करने और करवाने,देश की गतिविधियों पर नजर रखने, इसके सुचारू रूप से चलने और चलाने के लिए, सत्ता की बागडोर सम्भालने के लिए, देश की हरेक जानकारी को सरकार और जनता के बीच पहुचाने के लिए,आदि का जिसे दायित्व सौपा गया है,उनमे कोई कानून को दोषी ठहरा रहा तो किसी को कानून दोषी ठहरा रहा। मगर दोषी कौन है इसका निर्णय करना थोड़ा कठिन है। क्योंकि हर किसी के गुनाहों की पृष्ठभूमि भले ही एक हो मगर सजा एक नहीं होती है। जो भ्रष्टाचार में लिप्त है वो देश को भ्रष्टाचारमुक्त करने की बात करता है। जो खुद अनपढ़ है वो शिक्षित करने की बात करता है।जो विकलांग है वो स्वास्थ्य की बात कर रहा है। जो खुद अपराधी है वो देश को अपराध मुक्त करने की बात करता है तो यह सोचने को मजबूर कर ही देती है कि क्या आजादी से पहले इससे भी खराब हालात थे? तो इसका जबाब तो हाँ है। क्योंकि कुछ भी हो मगर गुलामी के जंजीर में जकर कर रहना एक आजाद परिंदे के लिए कैसा दौर होता है ये तो एक बेजुबान जानवर को देख भी समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए शिवमंगल सिंह सुमन की ये पंक्तियाँ....
कनक-तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे।
हम बहता जल पीनेवाले मर जाएंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी कनक-कटोरी की मैदा से।"
जब एक बेजुबान सोने के पिंजरे में रहना पसंद नहीं करता फिर हम मानव इसे कैसे सहन कर सकते थे। और हमने अपने आजादी के लिए जो कीमतें चुकाई है वो कितना अनमोल है इसका निर्णय करना किसी भारतीय के लिए आसान नहीं होगा।क्योंकि भारत का प्रत्येक व्यक्ति ,प्रत्येक परिवार, प्रत्येक समाज,प्रत्येक गाँव,धर्म जाती, संप्रदाय, आदि के लोगों ने किसी ना किसी को खोया।और जो खोता है उसे ही जाने वाले की असली क़ीमत पता होती है। जब देश के आजादी के लिए 14 साल का बच्चा फांसी पर झूल जाता है।तो पूरे की देश आत्मा रोती है। जलियांवाला बाग में जब किसी खास प्रांत के अनगिनत लोग शहीद होते है तो देश की हर माँ,अपना बेटा खो देती है, हर बहन अपना भाई खोती है।कवि प्रदीप की पंक्ति ....
"कोई सिख कोई जाट मराठा कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर वो खून था हिंदुस्तानी"
आजादी के दशकों बाद की ये रचना कितने आसान शब्दों में कह देती है कि हम देखने में भले ही अलग अलग हो मगर जरा गौर से देखो हम एक ही है। जहाँ हर भारतीय कुछ नहीं बल्कि बहुत कुछ खोया वहाँ एक चीज़ जो भारत को चाहिए था वो उसे इस संग्राम के दौरान मिली। जातीय एकता,साम्प्रदायिक एकता, सामुदायिक एकता,और अलग अलग प्रान्तों, वर्गों, जाति, संप्रदाय, और समुदाय वाला देश एक दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर सभी भेदभाव को मिटाकर सिर्फ एक धर्म,जाति ,समुदाय,प्रांत, में समाहित हो गया जिसका नाम है भारत। लेकीन भारत के गुलाम होने से लेकर आजादी पाने तक और फिर आजादी के बाद से आज तक एक ऐसा समुह है जो यह कदापि नहीं चाहता कि हम विश्व में भारत अपनी एक अलग पहचान साबित कर सकें। हालांकि यह समुह कभी सफल नहीं हो पाया क्योंकि भारत के लोग भारतीयता को पहले महत्त्व देते हैं ना कि किसी के बहकावे में आते है।
इतनी दिक्कतें, भ्रष्टाचार, चोरी, लूट, आपदा, जनसंख्या की बहुतायत मात्रा,आदि के बावजूद आज जहाँ भारत है,काबिले तारीफ है। और अगर कुछ पहलुओं को छोड़ दिया जाय तो यह कहना कि भारत एक सुखी सम्पन्न और समृद्ध राष्ट्र है मुझे नहीं लगता ग़लत होगा। लेकिन हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे सभी सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव इस पर पड़ता है। इसलिए हमे भारत को सकारात्मक दौर का हिस्सा बनाना चाहिए ताकि फिर से हमारा भारत वो भारत बन जाए जिसकी ऐतिहासिक गाथा का हम बखान करते हैं। और विश्व हमे विश्वगुरु कह कर पुनः संबोधित करे।