Sunday, 15 August 2021

आजादी के 75वीं वर्षगांठ

 गुलामी के 7 दशक बाद आज हम आजादी के 75वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं। चुकीं गुलामी का वह मंजर हमने नहीं देखा और अतीत के पन्नों में जो कहानियाँ बयां है, उसमें कुछ को छोड़कर सब में स्वार्थ की महक आतीं है और एक पन्ना दूसरे को गलत साबित करने को बेताब रहता है।ऐसे में सवालों का एक बहुत बड़ा पिटारा हर भारतीय पास है मगर किससे पूछें इसका जवाब किसी के पास नहीं है। देश की कहानियों में अतीत  का एक सुंदर सा चित्र, वर्तमान के परिस्थितियों पर क्या कुछ नहीं कहती? मगर अपने अंदर की कमियों को देशभक्ति की चोला पहन कर हर कोई छुपाया हुआ है। और एक दूसरे को उँगली दिखा रहा है। जनता उसे वोट कर रहीं है जिसने पिछले चुनाव में उससे झूठ बोला था। नेता इसलिए देश को लूट रही है क्योंकि उसे लगता है जनता ने उसे खजाने का मालिक बना दिया है, और मालिक तो कुछ भी कर सकता है। अभिनेता, कर्मचारी, छात्र, शिक्षक, लेखक, श्रोता, दर्शक, डॉक्टर, अभियंता, वकील, पत्रकार आदि हर कोई अपने स्वार्थ की पूर्ती के अपने हिसाब से काम कर रहा है।और देशभक्ति की परिभाषा अपने हिसाब से तय कर रहा है।



 यहाँ तक कि लोकतंत्र के चार स्तम्भ जिसे देश की रक्षा करने, कानून व्यवस्था का पालन करने और करवाने,देश की गतिविधियों पर नजर रखने, इसके सुचारू रूप से चलने और चलाने के लिए, सत्ता की बागडोर सम्भालने के लिए, देश की हरेक जानकारी को सरकार और जनता के बीच पहुचाने के लिए,आदि का जिसे दायित्व सौपा गया है,उनमे कोई कानून को दोषी ठहरा रहा तो किसी को कानून दोषी ठहरा रहा। मगर दोषी कौन है इसका निर्णय करना थोड़ा कठिन है। क्योंकि हर किसी के गुनाहों की पृष्ठभूमि भले ही एक हो मगर सजा एक नहीं होती है। जो भ्रष्टाचार में लिप्त है वो देश को भ्रष्टाचारमुक्त  करने की बात करता है। जो खुद अनपढ़ है वो शिक्षित करने की बात करता है।जो विकलांग है वो स्वास्थ्य की बात कर रहा है। जो खुद अपराधी है वो देश को अपराध  मुक्त करने की बात करता है तो यह सोचने को मजबूर कर ही देती है कि क्या आजादी से पहले इससे भी खराब हालात थे? तो इसका जबाब तो हाँ है। क्योंकि कुछ भी हो  मगर गुलामी के जंजीर में जकर  कर रहना एक आजाद परिंदे के लिए कैसा दौर होता है ये तो एक बेजुबान जानवर को देख भी समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए शिवमंगल सिंह सुमन की ये पंक्तियाँ....


"हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे।
हम बहता जल पीनेवाले मर जाएंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी कनक-कटोरी की मैदा से।"


जब एक बेजुबान सोने के पिंजरे में रहना पसंद नहीं करता फिर हम मानव इसे कैसे सहन कर सकते थे।  और हमने अपने आजादी के लिए जो कीमतें चुकाई है वो कितना अनमोल है इसका निर्णय करना किसी भारतीय के लिए आसान नहीं होगा।क्योंकि भारत का प्रत्येक व्यक्ति ,प्रत्येक परिवार, प्रत्येक समाज,प्रत्येक गाँव,धर्म जाती, संप्रदाय, आदि के लोगों ने किसी ना किसी को खोया।और जो खोता है उसे ही जाने वाले की असली क़ीमत पता होती है। जब देश के आजादी के लिए 14 साल का बच्चा फांसी पर झूल जाता है।तो पूरे की देश आत्मा रोती है। जलियांवाला बाग में जब किसी खास प्रांत के अनगिनत लोग शहीद होते है तो देश की हर माँ,अपना बेटा खो देती है, हर बहन अपना भाई खोती है।कवि प्रदीप की पंक्ति ....


"कोई सिख कोई जाट मराठा कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर वो खून था हिंदुस्तानी"


आजादी के दशकों बाद की ये रचना कितने आसान शब्दों में कह देती है कि हम देखने में भले ही अलग अलग हो मगर जरा गौर से देखो हम एक ही है। जहाँ हर भारतीय कुछ नहीं बल्कि बहुत कुछ खोया वहाँ एक चीज़ जो भारत को चाहिए था वो उसे इस संग्राम के दौरान मिली। जातीय एकता,साम्प्रदायिक एकता, सामुदायिक एकता,और अलग अलग प्रान्तों, वर्गों, जाति, संप्रदाय, और समुदाय वाला देश एक दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर सभी भेदभाव को मिटाकर सिर्फ एक धर्म,जाति ,समुदाय,प्रांत, में समाहित हो गया जिसका नाम है भारत। लेकीन भारत के गुलाम होने से लेकर आजादी पाने तक और फिर आजादी के बाद से आज तक एक ऐसा समुह है जो यह कदापि नहीं चाहता कि हम विश्व में भारत अपनी एक अलग पहचान साबित कर सकें। हालांकि यह समुह कभी सफल नहीं हो पाया क्योंकि भारत के लोग भारतीयता को पहले महत्त्व देते हैं ना कि किसी के बहकावे में आते है।



 लगभग 200 वर्षों की गुलामी के वाबजूद जब भारत वैश्विक पटल पर किसी के आगे नहीं झुका तो उस गुमनामी आक्रमणकारी के द्वारा भारत को आंतरिक रूप से तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। कभी धार्मिक आस्था का अपमान करना, जातीय गरिमा का खंडन करना, सामाजिक संस्कृति के विरुद्ध लोगों को बहका कर  एक दुसरे को आपसी रंजिश का शिकार बनाना इनका प्रमुख कार्य होता है।  झूठ, नफरत, द्वेष, घृणा, आदि के सहारे इनका मकसद होता है कि ये किसी समाज, धर्म, समुदाय, जाति आदि के नाम पर ये लोगों को वर्गीकृत करते फिर आपसी मतभेद को बढ़ाने का प्रयास कर अपनी दाल गलाते है।  ऐसे लोग हर जगहों पर मौजूद है, हमारे, आपके पास, हर धर्म, जाति, समुदाय और संप्रदाय में इनकी संख्या मौजूद हैं।  जो सामने में तो हमारी तरक्की के लिए खुद को दांव पर लगाने से नहीं हिचकते लेकिन पीठ पीछे हमारे नाम से भी जलने लगते हैं। ऐसे लोग समाज को जाति, संप्रदाय, धर्म और समुदाय के नाम पर एक दूसरे को बांटने का काम करते हैं।  


जिन से हमें भारत को बचना होगा ताकि भारत का एक और टुकड़ा ना हो। आजादी से पहले हम उनलोगों के गुलाम थे जिसे आज नहीं तो कल भागना पड़ता ही क्योंकि वो हमारे अपने नहीं थे, लेकिन अभी हम जिन लोगों के गुलाम है उनसे आजाद होना बड़ी मुश्किल है, क्योंकि ये हमारे अपने है जिसे हम भगा भी नहीं सकते है।  वर्तमान में महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा की उपयुक्त उपलब्धता में कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं में लचरता,भौगोलिक परिस्थितियों के कारण स्थानीय समस्या और उसका निदान आदि में शिथिलता हमारे समाज, देश को अंदर से कमजोर कर रहीं है। हमारी जनसंख्या इतनी अधिक है कि इन परेशानियों पर लगाम लगाना बड़ी मुश्किल  जरूर है मगर इसका निदान भी है। जिसके लिए प्रयास होने चाहिए। लेकिन जब हम किसी गैरों के बहकावे में आकर अपनी अस्मिता पर उंगली उठाने का घिनौना काम करते, तो आजादी के उस महान गुमनाम और मशहूर सपूतों की आत्मा रोती जरूर होगी। क्या हमने जिस आजाद भारत के सपने संजोए थे उसकी हकीकत ऐसी होने वाली है???





 लोकतंत्र के मंदिर में लोकतंत्र का अपमान, चंद वोटों, और लोहे के कुछ सिक्कों के लिए देश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, राष्ट्रीय गरिमा के खिलाफ है। अगर आजाद देश में खुलेआम ऐसी हरकतें होती है और उसे रोकने वाला कोई नहीं है तो मेरा मानना है कि हम गुलाम ही सही थे क्योंकि छुपकर और छुपाकर ही सही लेकिन हमने राष्ट्रीय गरिमा का सम्मान किया ना कि उसका अपमान। आज देश को आजाद हुये दशकों बीत गए मगर हम वहीँ है जहाँ अंग्रेजों ने हमे छोड़ा था।  हालांकि इसमें हमारे  देश के सभी नागरिकों, या नेता, अभिनेता, या किसी व्यक्ति विशेष की कोई योगदान नहीं है कि उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया या होने दिया।  लेकिन कहा गया है जुर्म करने वाले से ज्यादा गुनाहगार जुर्म सहने वाला होता है। और मैं यह तो पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि हमने उस जुर्म को सहा है जो हमारे देश की अस्मिता को बदनाम किया है, उसका अपमान किया है। ऐसे लोग हमारे आसपास है जिनकी पहचान हमें है लेकिन हम अपने फायदे के लिए उनसे रिश्तेदारी तो कभी भाईचारा निभाना अपना गौरव समझते हैं।


 इन 75 सालों में हमने खूब तरक्की की, गुलामी के कारण जो हमारा समाज बिखरा पड़ा था, उसे एकजुट करने का प्रयास किया।  समाज के सभी वर्गों को आगे बढ़ाने के लिए सबको अवसर प्रदान किए गए।  देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया गया।  स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में विकास की नीव रखी गयीं और उसपर काम किया जा रहा है। हम देश को विज्ञान,प्रौद्योगिकी के सहारे टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अत्याधुनिक विकास के लिए प्रयासरत हैं। ना सिर्फ़ पृथ्वी पर बल्कि हमने अपना तिरंगा अंतरिक्ष मे भी लहराया।  जहाँ दुनियाँ कई प्रयास के वाबजूद असफल रहीं हमने एक प्रयास में सफ़लता प्राप्त कर लिया। कोई भी क्षेत्र हो हमने विश्व को अपने कदमों में झुकने के लिए मजबूर कर दिया। हालांकि गुलामी के कारण आर्थिक स्थिति सही नहीं रहने के बावजूद हमने वो कर दिया जिसकी कल्पना विश्व के लिए दूभर है। विकास के लिए जो भी कदम उठाने की जरूरत पड़ी हमने उठाया, मगर आर्थिक कमी, सामजिक असामंजस्यता, राजनैतिक चाटुकारिता, आदि के कारण हम अपने निर्धारित लक्ष्य को नहीं पा सके।




इतनी दिक्कतें, भ्रष्टाचार, चोरी, लूट, आपदा, जनसंख्या की बहुतायत मात्रा,आदि के बावजूद आज जहाँ भारत है,काबिले तारीफ है। और अगर कुछ पहलुओं को छोड़ दिया जाय तो यह कहना कि भारत एक सुखी सम्पन्न और समृद्ध राष्ट्र है मुझे नहीं लगता ग़लत होगा। लेकिन हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे सभी सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव इस पर पड़ता है। इसलिए हमे भारत को सकारात्मक दौर का हिस्सा बनाना चाहिए ताकि फिर से हमारा भारत वो भारत बन जाए जिसकी ऐतिहासिक गाथा का हम बखान करते हैं। और विश्व हमे विश्वगुरु कह कर पुनः संबोधित करे। 

संपादकीय विचार (Editorial Opinion)

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