Wednesday, 29 September 2021

शैक्षणिक आधुनिकीकरण और क्रांति!!

 

शिक्षा किसी राष्ट्र, समाज, या व्यक्ति के नैतिक उत्थान की कुंजी होती है। शिक्षित होने के कारण ही मानव आज अन्य प्राकृतिक प्राणियों से आगे है। प्राकृतिक के सभी जिवित अथवा मृत संसाधनों का उपयोग करने के लिए वह हमेशा प्रयासरत रहता है,और आज सफ़लता के उच्च शिखर पर पहुंच गया है। जिसमें मुख्य कारण यह है वह समय ,प्रस्थिति, के हिसाब से मांग और आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए किसी और से हमेशा एक कदम आगे रहता है। या यह कहें कि वो प्रतिदिन, हर क्षण अपने विकास और उत्थान की नई कहानी लिखते हुए अपने गौरवशाली अतीत में एक नया अध्याय जोड़ते हुए अपनी स्थिति को सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करता है। तो शिक्षा के कारण ही उसे यह भी समझ आती की कैसे मानव को अपनी पौराणिक संस्कृति, सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक संस्कृति आदि को सम्भाले वैश्विक आधुनिकीकरण को स्वीकार करें।यह आधुनिकीकरण सिर्फ़ शिक्षा के लिए नहीं होती बल्कि शिक्षा की ज़रूरत हर क्षेत्र में आधुनिकीकरण के लिए होती है। और जो राष्ट्र, समाज और व्यक्ति आदि इस बदलाव को स्वीकार कर आधुनिकीकरण को स्वीकार कर करने की क्षमता रखता

 

है, बाद में वही विश्व में बादशाहत कायम रख पाता है। और जो इस बदलाव का अनदेखा करता है वह राजा से रंक और बाद में अपनी अस्तित्व तलाशने को मजबूर हो जाता है। अतीत में अनेकों उदाहरण है, भारत जो कभी विश्व शिक्षा का केंद्र बिंदु था आज कुछ भी नहीं है। जहाँ अनेकों छोटे बड़े विद्यालयों, विश्व विद्यालयों, महा विद्यालयों अलग अलग ख्याति के कारण प्रचलित ही नहीं थे बल्कि उनकी गुणवत्ता का विश्व लोहा मानता था, लेकिन आज भारत के किसी भी शिक्षण संस्थानों के बारे में ऐसी राय नहीं है।रिपोर्ट के अनुसार युवाओं का एक बहुत बड़ा भाग उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए दुसरे देश की ओर रुख करना पसंद करता है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से इस आंकड़ों में सुधार लाने के लिए प्रयास किया जा रहा है और इसमें सुधार आ भी रही है। अलग अलग पहलुओं को ध्यान में रखकर भारतीय शिक्षा व्यवस्था को वैश्विक स्तर पर बेहतर बनाने तथा भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए शिक्षा को उसके अनुरूप ढाला जा रहा है। और नए नए प्रयोग किए जा रहे हैं।और शायद इसीलिए जब विकास के अलग अलग पहलुओं की बात कही जाती है तो इसका खास ध्यान रखा जाता है कि हम शैक्षणिक विकास को भूल ना

 

जाए। बल्कि हम  इसको प्रधानता देते हैं। क्योंकि इसका संबंध सभी से है।

 

जब हम शिक्षा के आधुनिकीकरण के उद्गम की बात करते हैं तो इसका निर्णय करना मुश्किल हो जाता है कि किस शैक्षणिक प्रारूप में बदलाव को आधुनिकीकरण का जड़ माना जाए।  मतलब कि अगर हम मानव के उत्पत्ति के समय से इसका अवलोकन करे तो यह निष्कर्ष निकलता है कि मानव अपने आवश्यकता के अनुसार किसी भी प्रकार की कोई बदलाव करता है या इसकी चेष्टाएं करता है। जैसे आदिमानव प्रारम्भ में किसी चीज को समझने के लिए संकेत का प्रयोग किया, फिर किसी चिन्ह का,और फिर किसी गुफाओं, कंदराओं के दीवारों पर अपने समझ के अनुसार चित्रांकन कर, आदि अगर इसके बदलाव को समझने का प्रयास करेंगे तो हम वर्तमान के बदलाव जिसे आधुनिकीकरण कह रहे हैं वो आसानी से समझ सकते हैं। आदिमानव को जब अपनी बातें अपने किसी साथी को बताना होता तो पहले वो संकेत में बताया करता होगा लेकिन इसमें एक परेशानी होती होगी कि वह कहना कुछ और चाहता मगर सामने वाला कुछ और समझ रहा है।फिर चिन्हों

 

का प्रयोग, जो पहले से ज्यादा आसान था। फिर चित्रों का प्रयोग जो पहले दोनों के से ज्यादा आसान था, का प्रयोग किया जाता था। यह बदलाव अलग अलग समय समय के अनुरूप प्रस्थिति और आवश्यकताओं के अनुसार हुआ। फिर भाषाओं, फिर कागज, और अभी डिजिटल स्वरूप, कुरेदने से लेकर छापने तक आदि अलग बदलाव है जो शैक्षणिक प्रारूप में बदलाव लाते गये और हम मजबूत होते गये है। और अभी हमारे पास लिखने से छापने तक, अपनी बातों को दुसरे तक पहुंचाने से लेकर उनकी बातों को समझने तक, पत्तों, भोजपत्र, कपड़े, आदि से लेकर कागज तक आदि हमने अपनी आवश्यकता के अनुरूप प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अपने विकास के लिए किया है।  हमे अपनी शैक्षणिक विकास के लिए भी अपने शिक्षा के स्वरूप में परिवर्तन लाया है जो हमें एक मजबूती प्रदान करने का काम कर रहा है ताकि हम भविष्य में होने वाले आवश्यकताओं का ध्यान अभी से ही रखे। और उसके अनुसार हम अपने में बदलाव लाए। जिसके लिए हम शिक्षा के क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीक, कौशलऔर उद्यमिता, प्रौद्योगिकी आदि के सहारे इसे और भी सरल बनाने के लिए प्रयासरत हैं। उच्च शिक्षा में आवश्यकता

 

अनुसार एक साथ पढ़ाई और फिर अवकाश लेकर बाद में पुनः शुरुआत की मौका, समझ और पसंद के अनुसार विषयों का चुनाव और विस्तार, उच्च शिक्षा में अचानक से भार नहीं पड़े उसके लिए प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय से ही प्रयास, डिजिटल और तकनीक इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार, समय समय पर शैक्षणिक संरचना में बदलाव, प्रायोगिक शिक्षा पर विशेष बल, माध्यमिक,प्राथमिक और उच्च शिक्षा के अलग अलग विषयों की पढ़ाई ,अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय भाषाओं में करवाना  आदि ऐसे प्रयास है जो भारतीय शिक्षा के विकास के  लिए उपयुक्त हो सकते है। वर्तमान में छात्रों को आर्थिक परेशानी भी रहती है। जिसके कारण बहुत से छात्र इससे वंचित रह जाते हैं। जिसके लिए भी प्रयास हो रहे है।ऐसे छात्रों को अलग अलग स्तर पर सहायता और सहयोग के लिए प्रोत्साहन एवं आर्थिक सहयोग प्रदान करना छात्रों के लाभकारी है। प्राथमिक विद्यालयों से लेकर उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय के स्वरूप में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की योजना और इसके लिए जमीनी स्तर पर प्रयास करना,भारतीय शिक्षा व्यवस्था के बेहतर भविष्य के लिए एक सराहनीय प्रयास है। लेकिन इसकी स्थिति

 

विश्व में तब मजबूत होगी जब एक एक नागरिक, शिक्षक, छात्र ,शिक्षण संस्थान,और सरकार सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध होगी। अन्यथा हम सिर्फ कल्पनाओं में ही रहेंगे और दूसरे हमसे आगे बढ़ते चले जाएंगे। जिसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हम समावेशी शिक्षा व्यवस्था का सहारा ले सकते हैं।  जिसमें समाज के सभी वर्गों के बच्चों को शैक्षणिक गतिविधियों से जोड़ना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। हालांकि 14 वर्षों तक के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा कानून पहले से लागू है।  मगर जमीनी स्तर पर महज यह नेताओं, राजनैतिक  चाटुकारों आदि के आर्थिक विकास का साधन बन गया है।  बच्चे स्कूल तो जाते है मगर शिक्षा ग्रहण करने नहीं। विद्यालयों में उपयुक्त शिक्षकों की कमी, क्लास रूम की कमी,आदि सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहें है । मगर कोई सुनने वाला नहीं है।  सरकारी स्कूल के शिक्षकों का कार्य ना सिर्फ पढ़ाना होता है। बल्कि अन्य कामों जो शैक्षणिक नहीं है उनमे उनका उपयोग किया जाता है। चुकी भारत में गरीबों की संख्या ज्यादा है और एक सामान्य स्कूल में नामांकन से लेकर पढ़ाई के दौरान आने वाले खर्च इतने अधिक होते है कि कोई सामन्य अभिभावक के द्वारा

 

इसका वहन करना काफ़ी दिक्कतों भरा होता है।  जिसका परिणाम यह होता कि समाज के बहुत बड़े भाग के बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।  जिसका मुख्य कारण आर्थिक स्थिति का मजबूत ना होना है। और आर्थिक तंगी के कारण अपने लालसाओं का गला घोंटने के लिए ये वहाँ पढ़ने जाते हैं ,जहाँ की वास्तविकता से हर कोई परिचित है।  माता पिता अपने हालत पर तरस खाते हुये सिर्फ मूक दर्शक बने रहने को मजबूर होते हैं।

 

समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने और वैश्विक स्तर पर भारतीय शिक्षा की गुणवत्ता एवं यहाँ के शिक्षण संस्थानों को एक अलग और अद्वितीय पहचान देने की कोशिश अनवरत जारी है।  जिसके लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। जिसका मकसद भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना है।  अन्य क्षेत्रों की तरह इस क्षेत्र में भी अत्याधुनिक तकनीक, टेक्नोलॉजी, विज्ञान, प्रौद्योगिकी आदि की सहायता से छात्रों, शिक्षकों के लिए एक ऐसी आधारशिला तैयार करने की बात की जा रही है,जो भारत के विश्वगुरु बनने में सहायक हो। और अगर बाद में इस पर उम्मीद से ज्यादा काल्पनिक भीड़ भी हकीकत में तब्दील हो जाय तो वह इसका भार थाम सकें। जो

 

अचंभित करने वाली नहीं हो।  मतलब कि हम अपना पैर इस कदर जमा ले ताकि अगर भविष्य में आधुनिकीकरण के प्रभाव के कारण वैश्विक शिक्षा का भूस्खलन भी होता है तो हम डटे रहे। और हमारा आधार और मजबूत हो जाय। और जो नुकसान हमे वैश्वीकरण के शुरुआत में हुआ वह पुनः ना हो।कैसे हम विश्वगुरु से सीधे अपनी अस्तित्व तलाशने में लगे हुए है, ऐसा ना हो कि फिर हमे उन घटनाओं का स्मरण करना पड़े।  इसलिए हमे खुद में बदलाव लाना होगा।  और इस बदलाव के कल्पना को एक सही आकार सिर्फ तब मिल सकती है जब हम इसके अलग अलग खण्डों का विस्तार वर्तमान के मांग और आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सफल हो जाते हैं। हम अलग अलग जगहों पर जब भारत के विश्वगुरु होने से लेकर बनने तक कि हकीकत और कल्पना का अवलोकन करते हैं तो सिर्फ यही सामने आता है कि हमने कल्पना के गुमनाम शहर में अपनी वास्तविक हकीकत को खोया है।  जिसे पाने के लिए हमे काफ़ी अधिक मशक्कत करनी पड़ रही है। और यह किसी एक के वस की है भी नहीं, इसलिए जब तक हम खुद से जागरूक होकर दूसरों को जागरूक नहीं करेंगे, इसके वास्तविक स्वरूप से परिचित नहीं

 

होंगे, एक दूसरे से कदम मिलाकर आगे नहीं बढ़ते है।  यह सिर्फ अपने मुहँ मियां मिट्ठू बनने वाली बात होगी।  और हम बस उलझे रहेंगे और हमारा पत्तन होता रहेगा।

इसलिए अब यह समय आ गया है जब हमे अपनी शैक्षणिक स्थिति को मजबूत करनी होगी। महामारी के कारण हम इसका फायदा उठा सकते हैं। क्योंकि महामारी के कारण हमारे देश समाज का नुकसान उतना नहीं हुआ जितना कि विश्व के अलग अलग प्रान्तों और देशों का हुआ है। जिसका फायदा उठाकर हम पुनः शुरुआत कर सकते हैं और एक बार फ़िर से भारत विश्व गुरु बन सकता है।


संपादकीय विचार (Editorial Opinion)

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