Monday, 14 November 2022

प्रकृति के गोद में बसा एक खूबसूरत राज्य…मना रहा अपना 22वां स्थापना दिवस...

 





भारत अपने विविधतापूर्ण सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए हमेशा सकारात्मक भूमिका सुनिश्चित करने के लिए तत्पर है। और यही विविधतापूर्ण सांस्कृतिक विरासत इसके विभाजन का दर्द रहा है। प्राकृतिक सौंदर्य,खनिज संपदा,गौरवशाली इतिहास व संस्कृति से समृद्ध प्रदेश झारखंड अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा हैं।झारखंड एक वन प्रदेश है। उसके नाम में ही उस राज्य का पूरा स्वरुप दिखायी देता हैं जैसे झारखंड यानी ‘झार’ या ‘झाड़’ जिसे हम वन भी कह सकते है और ‘खण्ड’ यानी टुकड़े से मिलकर बना हुआ यानि झारखंड।15 नवंबर वर्ष 2000 को राज्य बिहार से अलग हो जल,जंगल और जमीन का प्रदेश बना झारखण्ड। प्राकृतिक संपदाओं से लिप्त ये प्रदेश देश के विकास में अहम हिस्सा रखता हैं।



झारखंड राज्य में कुल 24 जिले हैं और राज्य का कुल क्षेत्रफल लगभग 79,716 वर्ग किलोमीटर है।क्षेत्रफल के आधार पर देश का 15वां सबसे बड़ा राज्य है।झारखंड के अद्भुत झरने, पहाड़ी, वन्य जीव, अभ्यारण, दामोदर नदी पर पंचेत बांध और पवित्र स्थान जैसे बैद्यनाथधाम, पारसनाथ, रजरप्पा जैसे क्षेत्र राज्य के पर्यटक आकर्षण के लिए जाने जाते हैं। खनिज पदार्थ तो यहां की आबो हवा में बस्ती हैं।यहां का पदार्थ दुनियाभर में मशहूर हैं।झारखंड में कोयला, लौह अयस्क, तांबा अयस्क, यूरेनियम, अभ्रक, बॉक्साइट, ग्रेनाइट पत्थर, चांदी और डोलोमाइट जैसे मिनरल सोर्स मौजूद हैं। राज्य के आदिवासी प्रदेश की गौरव और शान हैं।आज़ादी के वक़्त अंग्रेज़ो के दांत खट्टे कर देने वाले और देश की स्वतंत्रता में अभूतपूर्व योगदान देने वाले भगवान बिरसा मुंडा की धरती है झारखंड।





केंद्र सरकार ने पिछले साल 15 नवंबर को आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में 'जनजातीय गौरव दिवस' मनाने की घोषणा की थी। पंद्रह नवंबर बिरसा मुंडा की जयंती है, जिन्हें देश भर के आदिवासी समुदाय के लोग भगवान का रूप मानते।ऐसे जननायक का जन्म झारखंड में हुआ था, ये यहां के लोगों की गर्व की बात हैं।महान स्वंतंत्रता सेनानी सिद्धू कान्हू की यह धरती प्रकृति के गोद मे बसा हैं। एक ऐसा राज्य जिसे भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हैं।राज्य के देवघर में अत्यन्त पवित्र और भव्य शिव मन्दिर स्थित है। बाबा वैधनाथ नाम से प्रसिद्ध यह जगह एक सिद्धपीठ हैं।हर वर्ष महीने में स्रावण मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु "बोल-बम!" "बोल-बम!" का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं। ये सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर लगभग सौ किलोमीटर की अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढाते हैं।



राजनीतिक अस्थिरता होने के कारण यह प्रदेश आज भी देश मे पिछड़ा हुआ हैं।यहां बेरोज़गारी और भुखमरी बड़ी समस्या रही हैं।बड़ी मात्रा में संपदा होने के बावजूद यहां के लोग प्रवास करने के लिए मजबूर हैं।प्रदेश में सही दिशा में कदम उठाने की जरूरत हैं जिससे विकास हो सकें और यहां के लोग संसाधन का सही उपयोग कर आगे बढ़ सकें।


प्रकृत्ति के गोद में बैठा भारत का यह प्रदेश बिहार से अलग होने के बाद भी अपनी पहचान को लेकर प्रयासरत है। देश की आर्थिक विकास ,समाजिक धारणाएँ, और प्राकृतिक आस्था के केंद्र में सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को एकजुट कर रहा है। 


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Thursday, 10 November 2022

बदलते किस्से जो कहानी बनते गए...

 


बर्मिंघम का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैदान, साल 2013 , तारीख़ 23 जून। यह आख़िरी बार था जब भारत अंतिम बार आईसीसी द्वारा आयोजित कोई बड़ा टूर्नामेंट जीता था। उसके बाद 9 सालों तक ऐसे किसी टूर्नामेंट में ऐसा मौका नहीं मिला। हालांकि इस 9 सालों में कुल 8 बार आईसीसी टूर्नामेंट का आयोजन हुआ, लेकिन भारत अपनी जीत को दोहराने में कामयाब नहीं हो पाया। 

कभी सेमीफाइनल में, कभी फ़ाइनल में तो लीग स्टेज से ही बाहर हो जाना, टीम के प्रदर्शन पर सवाल उठाने को मजबूर करते रहे है। टूर्नामेंट में जीत को दुहराने के लिए कुल 96 सूरमाओं का इस्तेमाल किया, लेकिन नतीजा नहीं बदला। हर बार टीम के सिलेक्शन पर कहा जाता रहा कि ये हमारे बेहतरीन टीम है जो जीत के सूखे को ख़त्म करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पिछले 9 सालों मे हम टेस्ट, एकदिवसीय, और टी20 सीरीज में अपना लोहा मनवाया, तीनों ही फॉर्मेट में हमने नंबर वन का खिताब हासिल किया। लेकिन जब बड़े मौकों पर देश को जरुरत पड़ी, देश के हाथ सिर्फ़ निराशा लगी। 


यह कहना कि खेल को खेल की भावना से खेलना चाहिए ,इसमे कोई दो राय नहीं है। लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है, जिसमें आपको रहना पड़ता है। अन्यथा आपके उपर उंगलियाँ उठनी प्रारंभ हो जाती। जिससे बचने के लिए आप चीजों के पुनरावृत्ति से बचते हैं। लेकिन अगर बार बार एक ही चीज को दोहराया जाता है तो आप कटघरे में होते हैं। जहाँ आपसे जबाब की उम्मीद की जाती हैं और वो जबाब आपके पास होनी चाहिए ताकि आप खुद का बचाव कर सके। हालांकि खेल एक खेल है जहाँ जीत और हार एक पहलु हैं। जिसको लेकर कभी सवाल नहीं होने चाहिए। लेकिन जब प्रदर्शन, तरीका, एप्रोच, रिएक्शन ,और नतीजा आदि निश्चित हो जाय तो वह किसी भी हालत में आपके लिए सकारात्मक नहीं होता, चाहे उसके परीणाम कुछ समय के लिए सकारात्मक ही क्यों ना हो। और पिछले 9 सालों में भारतीय टीम के साथ ऐसा ही होता रहा है। किसी मैच या टूर्नामेंट को लेकर पहले तो टीम के चयन पर सवाल उठते हैं, क्योंकि ऐसे खिलाडियों का चयन हो जाता है जिनका प्रदर्शन या तो समान्य रहता है या फ़िर पिछले कुछ मैच में खिलाडियों का प्रदर्श सामान्य से अधिक हो। 

इसके अलावे खिलाडियों के पिछले रिकार्ड भी मायने रखते हैं, अगर आप बड़े खिलाडियों मे है तो। टीम के चयन में कुछ ऐसे खिलाड़ी होते हैं जो चोट से जुझ रहे होते हैं, फिट नहीं होते, खेल के एक सामान्य दौर से गुजर चुके होते हैं, आदि अन्य फैक्टर जो खेल के लिए सही नहीं है। इसके अलावे बड़े टूर्नामेंट में ऐसे खिलाडियों को लेकर लेकर नजरंदाज का भाव भी रखना जिनका प्रदर्शन अच्छा तो है लेकिन बड़े मैचों में प्रदर्शन की कमी होती है जिनको कभी मौका ही नहीं मिलता। उन्हें कभी कभार मौका दिया जाता है, उसमें भी वो सिर्फ़ बेंच तक सीमित रह जाते हैं। फ़िर मैच या टूर्नामेंट मे प्रदर्शन को लेकर अनिश्चितता। बड़ी टीमों के खिलाफ दूसरे खिलाड़ियों पर निर्भरता। छोटे टीमों के खिलाफ भी प्रदर्शन के लिए संघर्षरत होना। कभी गेंदबाजी तो कभी बल्लेबाज़ी के सहारे नकारात्मकता को उजागर होने से बचा लेना। किसी एक पर ही निर्भर हो जाना। टीम में खिलाड़ियों के प्रदर्शन के बाद भी आशंकित रहना ऐसे पहलु हैं जो टीम की वास्तविक स्थिति को लेकर तमाम बातों को उजागर कर जाते हैं। 

एक अपेक्षित टीम के खिलाफ़ भी संघर्ष पूर्ण जीत। बार बार अपने उस गलतियों को दोहराना जिसका परिणाम टीम के हक में नहीं है। सवाल पूछने पर विवश कर देते हैं। जिसका जबाब देना ना सिर्फ़ खिलाड़ियों के लिए, बल्कि टीम के सभी सदस्य, स्टाफ़, बोर्ड आदि की जिम्मेदारी है। क्योंकि आप देश के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं। आपके फैसलों के आधार पर ही देश की स्थिति, पहचान, और पोजीशन का निर्धारण होता है।




खैर इस बात से निराश हो जाना भी गलत है कि आप एक खेल के परीणाम को लेकर तमाम तरह की किस्सों का ज़िक्र करने लग जाते हैं जिसकी शायद जरुरत नहीं है। क्योंकि एक पोजीशन पर पहुँचना भी बहुत बड़ी बात होती है। जहाँ से आगे बढ़ने के लिए हमे काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती है। हमे लगता है कि हमने चीजों के लिए तैयार है और समय पर हम फ़तह कर लेंगे। लेकिन हम गलत होते हैं। और यह बार बार साबित होती रहती है। उदाहरण के लिए अगर देखे तो भारत पहली बार 1983 में आईसीसी टूर्नामेंट में विजेता बना था। जिसके बाद 24 साल लगे फ़िर से उस चीज को दोहराने में। जिन 24 सालों कितने मौकों पर टीम को आलोचनाओं और तारीफों के बीच साबित करने का अवसर मिला। जहाँ टीम सफल और विफल रही। इसमें सबसे बड़ी बात यह रहीं कि टीम प्रयासरत रही। जिसका नतीजा रहा कि चीजें वापिस से सुरु हुई। जिसका परिणाम मिला। फ़िर जब 2007 में टीम आईसीसी द्वारा आयोजित प्रथम टी20 टूर्नामेंट में खिताब हासिल किया तो एक नये अध्याय की शुरुआत हो गयी। और वो अध्याय खत्म हो गया जिसके ख़त्म होने का इंतजार लम्बे अर्से से हो रहा था। उसके बाद 7 सालों तक भारती टीम सफ़लता के उस आयाम पर स्थापित थी जहाँ पहुँचना किसी के लिए कल्पनातीत है। 2007, 2010, 2011 ,2013 , ऐसे अवसर थे जहाँ भारत अव्वल थी। और अपने स्वर्णिम दौर से गुजर रही थी। जिसका श्रेय भारतीय टीम के पूर्व कप्तान एमएस धोनी को जाता है। और वो साल आख़िरी था जब हमने किसी आईसीसी टूर्नामेंट में खिताब को चूमा था।




 फिर अवसर आता गया और हम निराश होते गए। साल 2014 से लेकर 2022 तक कुल 8 बार आईसीसी ने अवसर प्रदान किया मगर हम दहलीज पर जाकर यू टर्न लेने को विवश होते रहे। दुनियाँ ने हमारा लोहा माना, हमने कई बार वो किया जो असम्भव था,फ़िर भी हमे वो नहीं मिला जिसकी हमे तलाश थी। लेकिन हमारी कहानी खत्म नहीं हुयी है ,हमारा वजूद अभी कायम है। दिन बुरे है तो क्या हुआ, हमारा दौर फ़िर वापस आएगा जहाँ हम ख़ुद नहीं विश्व हमारी उपलब्धियों के आगे नतमस्तक होगा। फिलहाल जरूरत है हमे अपनी खामियों को दूर करने की। आत्म चिंतन की। ताकि नाकामयाबी की पुनरावृत्ति ना हो। क्योंकि जब आपसे उम्मीदें होती है तो आपको उम्मीदों पर खरा उतरने की जरूरत होती है ताकी आपकी पहचान बरकरार रहे।


संपादकीय विचार (Editorial Opinion)

केंद्र सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष में, इस बार 5 लोगों को भारतरत्न देने की घोषणा की हैं। केंद्र के इस घोषणा के बाद जहां विपक्...