पिछली बार आप ने ट्रेन से सफ़र कब किया था? क्या आपको याद है, आपके किसी रिश्तेदार ने कब ट्रेन से यात्रा की थी? या फिर कोई ऐसा वाक्या जो ट्रेन यात्रा से जुड़ी हो? बहुत से होंगे। हम अक्सर यादों को सहेज कर रखने की कोशिश करते हैं। क्योंकि यादें ही है जो हमे किसी की अनुपस्थिति में भी उसका स्मरण कराती है। लेकिन कुछ याद ऐसे भी होते हैं जो हमेशा के हमारे स्मृति पटल पर छप जाते हैं। इसमे से कुछ ऐसे होते है जिन्हें हम जीवन भर के याद रखना चाहते हैं तो कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम कभी याद करना चाहते। लेकिन उसकी यादें हमेशा के लिए रह जाती है।
पिछले दिनों उड़ीसा के बालासोर में हुयी रेल दुर्घटना भी ऐसा ही है। इस भयंकर दुर्घटना ने लोगों से उनकी जिंदगी छीन ली। कुछ ही क्षण पहले मंजिल पर पहुँचने की, लोगों की उमंगता मातम में बदल गयी। घर पहुंचने की बैचेनी, अपने प्रियजनों को देखने की लालसा , बेटे से मिलने की माँ की बेबसी आदि कभी ना ख़त्म होने वाली इंतजार में बदल गयी। कई महीनों के संदेशों की पोटरी बाँध कर अपने घरों की ओर निकले लोग खुद संदेश बन कर घर पहुंच रहे हैं। घर की उम्मीदों और जिम्मेदारियों की गठरियाँ खुद एक गठरी बन गयी। जो बच गए उनकी दूसरी जिंदगी की शुरुआत मौत, लोगों की चीख़ -चीत्कार ,अफरातफरी की शोर के बीच ख़ुद के साथ हुए इस अद्भुत चमत्कार पर यकीन करते हुए अपने किस्मत का धन्यवाद रही थी। तो वही कुछ लोगों के पास अपने किस्मत को दोष देने का वक्त भी नहीं बचा था। और निराश ,हताश और मजबूर परिजन दही शक्कर को कोस रहे थे। इसके सिवाय उनके पास कुछ करने को था भी नहीं।
ऐसा नहीं था कि इस प्रकार की घटना पहली बार हुयी है बल्की ऐसी अनेकों दुर्घटनाएं पहले कई बार घट चुकी है। लेकिन हमने कुछ नहीं सीखा। इन घटनाओं से हमने सिर्फ़ लाशों की शक्ल में अपने फायदे को तलाशा है। जिसके पहचान के साथ अपनी रोटियाँ सेंकने की पूरी कोशिश की है। बड़े -छोटे मंचों से दुर्घटना के जिम्मेवार के साथ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की ओट में इस बात का खासा ध्यान रखा जाता है कि टीवी चैनलों और अखबारों में फोटो अच्छी आनी चाहिए। राजनैतिक फायदा के किसी भी नुकसान को बर्दाश्त किया जा सकता है। मामलें के प्रति सरकार की उदासीनता इस बात से लगाया जा सकता है कि घटनाएं के 2 दिन बाद भी बिना किसी देरी किए ट्विटर ट्विटर खेल रही है। घायलों को अस्पताल ले जाने वाली गाड़ी एक बार फ़िर से दुर्घटनाग्रस्त हो जा रही है। विपक्ष को सरकार की इस्तीफे के अलावे और कुछ नहीं चाहिए। दुर्घटनाग्रस्त हुए लोगों और उनके परिजनों से मिलने क़वायद तो पूरी हो चुकी है लेकिन अभी सरकार की अंतिम जवाबदेही बची हुयी है। जो मुआवजे की घोषणा कर अपना पल्ला झाड़ लेगी। क्योंकि ऐसा ही होता आया है। जिनकी जाने गयी, जिन्होंने अपने परिजनों को खोया, जो अब शारीरिक रूप से विकलांग हो गए उनकी गलती क्या थी इसका जबाब किसी पास नहीं।
सरकार और पुलिस अभी भी उन मामलों की जाँच ही कर रही है जिसके वज़ह से यह घटनाएं घटी। सवाल य़ह उठता है कि क्या य़ह इतना मुश्किल है? या सरकार चाहती ही नहीं है कि इसका निवारण जल्दी से हो? क्योंकि पिछले कुछ घटनाओं में कारवाई की रफ़्तार सवालों के घेरे में पहले से है। जानकारी के लिए अभी जब मैं य़ह लेख लिख रहा हूँ तो रेलवे मंत्रालय द्वारा इसकी जाँच सीबीआई को सौंप दी गई है। अब देखना होगा कि मामले के जाँच में क्या परीणाम निकलते है।
गौरतलब है कि भारतीय रेलवे का राष्ट्रीयकरण 1951 में किया गया था जो वर्तमान में एशिया का दूसरा सबसे बड़ा तथा विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। लेकिन इसके साथ-साथ यह दुर्घटना में भी लगभग नंबर वन पर ही है। अभी तक भारतीय रेल के इतिहास में सबसे खतरनाक दुर्घटना 1981 में हुई थी जब एक यात्री ट्रेन पुल को पार करते समय पटरी से उतर गई थी। यह घटना बिहार में हुई थी जब ट्रेन की कोच बागमती नदी में डूब गईं। उस हादसे में 800 यात्रियों की मौत हो गई। दुःख की बात यह है कि कई पीड़ितों की लाश आज भी नहीं मिली। इसके बाद समय अन्तराल पर 1980 से 2002 तक लगभग हर साल औसतन 475 ट्रेन के पटरी से उतर जा रही थी। जिसके पीछे संसाधन की कमी का बहाना था। बाद में फ़िर जिसमें काफी बदलवा हुयी और रेल सुरक्षा में सुधार हुआ है वर्तमान में गंभीर ट्रेन दुर्घटनाओं की कुल संख्या पिछले दो दशक में 300 से घटकर 22 हो गई है। रेलवे की रिपोर्ट के अनुसार 2017 तक हर साल लगभग 100 से अधिक यात्री ट्रेन दुर्घटना में मारे जाते थे।
भारतीय रेलवे ख़ुद के लिए आधुनिक संसाधन संपन्न रेलवे के रूप में प्रस्तुत करती है। लेकिन आंकड़ों से य़ह मेल नहीं खाता। क्योंकि सुधार के दावे और अत्याधुनिक सुविधाएं मुहैया कराने के वाबजूद भी रेलवे दुर्घटनाएं रोकने में सफल नहीं हो पा रही। पिछले आंकड़ों को छोड़ दे और बालासोर के आंकड़ें ही चौकाने वाले है। अधिकारिक रूप से जारी आंकड़ों के अनुसार अभी तक इस हादसे में करीब 288* लोग मारे गए है जबकि 1116* लोग गम्भीर रूप से घायल है।
लेकिन सबसे गौर करने वाली बात यह है कि आंकड़े अधिकारिक है।
ट्रेन हादसों को कैसे रोका जा सकता है ?
1. एडवांस सिग्नलिंग सिस्टम (pts)
आधुनिक ट्रेनों में एडवांस सिग्नलिंग सिस्टम बेहद ही जरूरी है। वर्तमान में ज्यादातर देशों की ट्रेनों में पॉजिटिव ट्रेन कंट्रोल जैसे एडवांस सिग्नलिंग सिस्टम लगे होते हैं। यह PTC टेक्नोलॉजी ट्रेन की सभी गतिविधियों की निगरानी और उसके नियंत्रण के लिए GPS के साथ-साथ वायरलेस कम्युनिकेशन और ऑनबोर्ड कंप्यूटर के संयोजन का इस्तेमाल करती है। ट्रेन- टू-ट्रेन टक्कर , ओवरस्पीड डिरेलमेंट्स, गलत स्थिति में स्विच के माध्यम से ट्रेनों की आवाजाही आदि को मजबूत करने और कार्यात्मक रूप से ऐसी दुर्घटना को रोकने के लिए रोकने के लिए इस कम्युनिकेशन- बेस्ड और प्रोसेसर-बेस्ड ट्रेन कंट्रोल टेक्नोलॉजी का उपयोग करता है।
2. ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली (tcas)
य़ह यात्रा के दौरान दूसरी ट्रेन , वाहन , या पैदल चलने वाले लोगों सहित पटरियों पर आने वाली अन्य बाधाओं का पता रडार, लिडार और अन्य सेंसर तकनीकों का इस्तेमाल से लगाती है। ये सिस्टम ट्रेन ऑपरेटरों (लोको पायलटों) को रीयल- टाइम अलर्ट प्रदान करता हैं, जिसके सहारे पायलट को टकराव से बचने के लिए तत्काल कोई कार्रवाई करने में मदद मिलती है।
3. स्वचालित ट्रैक निरीक्षण (ATI)
संभावित खतरों की पहचान के लिए पटरियों का नियमित निरीक्षण जरूरी है। इसलिए इस खतरे की पहचान के लिए स्वचालित ट्रैक निरीक्षण यानी ऑटोमेटिक ट्रैक इंस्पेक्शन टेक्नोलॉजी बेहद ही कारगर है। य़ह टेक्नोलॉजी लेजर और कैमरों से लैस ट्रैक ज्योमेट्री कारें, अन्य गड़बड़ियों और विसंगतियों का पता लगाने के अलावा ट्रैक की स्थिति का त्वरित आकलन उसके निवारण के लिए सिग्नल भेजती है। जिसे हम ट्रैक रिकॉर्डिंग कार भी कहते हैं।
4. संभावित जोखिमों की पहचान और रखरखाव
बहुत सारी टेक्नोलॉजी ऐसी होती है जो संभावित जोखिमों का पता आसानी से लगा लेती हैं। इन तकनीकों को लागू करने से ट्रेन की अन्य संभावित गड़बड़ियों को पहचानने में मदद मिल जाती है। जैसे की ट्रेनों में तापमान, कंपन और निगरानी प्रणाली आदि। इनके डेटा का एनालिसिस करके शुरुआती चेतावनी संकेतों का पता आसानी से लगाया जा सकता हैं।जिसके बाद दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अन्य उपाय किया जा सकता हैं।
5. उन्नत संचार प्रणाली
ट्रेन हादसों को रोकने के लिए ट्रेन ऑपरेटरों, कंट्रोल सेंटर और रखरखाव कर्मियों के बीच बातचीत या संवाद का होना बेहद आवश्यक है। इसके लिए वायरलेस डेटा नेटवर्क तथा रीयल-टाइम रिपोर्टिंग टूल के साथ आधुनिक संचार प्रणालियां भी मौजूद रहती है जो किसी भी जानकारी को तेजी से भेजने में सक्षम होती हैं। आपात स्थिति में एक टीम का दूसरी टीम के साथ समन्वय और तुरंत प्रतिक्रिया देना भी हादसे को टाल सकता है।
रेल हादसों को रोकने में अग्रणी हैं ये देश
1.जापान
कुशल और सुरक्षित ट्रेन सिस्टम के लिए फेमस जापान ने दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अलग अलग प्रकार के कई एडवांस तकनीकों को लागू किया है। इसमे अत्याधुनिक सिग्नलिंग सिस्टम और स्वचालित ट्रेन नियंत्रण आदि है। इनकी बुलेट ट्रेन का वर्ल्ड रिकॉर्ड है कि इसमें आज तक कोई एरर नहीं हुई है। जापान उन्नत ट्रैक निरीक्षण और रखरखाव तकनीकों को अपनाते हुए नियमित निरीक्षण और रखरखाव पर काफी जोर देता है।
2.जर्मनी
जर्मनी अपने कठोर सुरक्षा मानकों और लेटेस्ट टेक्नोलॉजी में निरंतर निवेश के लिए मशहूर है। जर्मनी ने यूरोपीय ट्रेन कंट्रोल सिस्टम (ETCS) सहित कई अन्य ट्रेन कंट्रोल सिस्टम व्यापक रूप से लागू किए हैं, जो विभिन्न रेल नेटवर्कों में सुरक्षित ट्रेन संचालन सुनिश्चित करती है। जर्मनी कर्मचारियों की ट्रेनिंग पर भी काफी जोर देता है तथा समय पर जरूरत के मुताबिक नियमित सुरक्षा भी ऑडिट करता है।
3.दक्षिण कोरिया
दक्षिण कोरिया ने ट्रेन हादसों को रोकने में काफी प्रगति की है। ट्रेन सिस्टम ऑटोमेटिक ट्रैक निरीक्षण तकनीकों के साथ एडवांस सिग्नलिंग और अपने कम्युनिकेशन सिस्टम से लैस हैं। यह देश हाई-स्पीड रेल नेटवर्क में एक उत्कृष्ट सुरक्षा रिकॉर्ड है। जिसे केटीएक्स के नाम से भी जाना जाता है।
4.यूनाइटेड किंगडम
यूनाइटेड किंगडम ने ऑटोमैटिक वॉर्निंग सिस्टम और हाल ही में यूरोपीय रेल यातायात प्रबंधन प्रणाली (ईआरटीएमएस) जैसी उन्नत ट्रेन सुरक्षा प्रणालियों को लागू किया है। ये प्रणालियां रीयल-टाइम अलर्ट के साथ ऑटोमैटिक ब्रेकिंग क्षमताएं भी प्रदान करती हैं। जिससे ट्रेनों में टक्कर और उनके पटरी से उतरने के जोखिम को काफी कम किया जा सकता है।
ट्रेन हादसों को रोकने के लिए एडवांस तकनीकों, रखरखाव और कुशल संचार प्रणालियों के संयोजन की आवश्यकता होती है। एडवांस सिग्नलिंग, टकराव से बचाव सिस्टम, स्वचालित ट्रैक निरीक्षण और उन्नत संचार जैसी नवीनतम तकनीकें दुर्घटनाओं को रोकने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और यूनाइटेड किंगडम जैसे बड़े देशों ने इन तकनीकों को लागू कर और यात्री सुरक्षा को प्राथमिकता देने में सफलता हासिल की है। सफलता की इन कहानियों से सीखकर और उपायों में निवेश करके भारत भी सुरक्षित ट्रेन यात्रा को बढ़ावा दे सकता है।