Monday, 8 March 2021

आरक्षण :कितना सही कितना गलत ?

आरक्षण और इसकी व्यवस्था ।

सबसे पहले इस बात को समझा जाना चाहिए कि आरक्षण है क्या? और इसकी आवश्यकता हमें क्यों होती है? तो हम अगर अपने समाज में देखें तो हर वर्ग, जाती,समुदाय आदी के लोग हमें देखने को मिलेंगें। उन मे कोई आर्थिक रूप से से कमजोर होगा तो कोई मजबूत , कोई शारीरिक रूप से कमजोर होंगें तो कोई मजबूत होंगें, कोई राजनीतिक रूप से कमजोर होगा तो कोई मजबूत,कोई समाजिक रुप से कमजोर होगा तो कोई मजबूत । मतलब की यँहा हर कोई बराबर नहीं है। मगर जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो उसका पहला सिध्दान्त यहीं है की सब कोई समान रूप से एक दुसरे के बराबर है, और इसके लिये अलग अलग  तरह के अधिकार नागरिकों को दिये गये है। और आरक्षण भी उसी का स्वरुप है, जिसके द्वारा समाज के ऐसे लोग जो आर्थिक रूप से कमजोर है,समाजिक रुप से कमजोर है, राजनीतिक रूप से कमजोर है,आदी उनके लिए संविधान के द्वारा आधिकार दिये गये है।ताकी उनके साथ किसी तरह का मतभेद ना हो और उसे उसका हक़ मिल सके। 



अलग अलग व्यक्तियों ने संविधान के इस अधिकार को अलग अलग तरीके से प्रस्तूत किया है। जिससे कुछ लोग सहमत है और कुछ असहमत भी है। मगर इसके बावजूद भी समाज के ऐसे लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिये प्रतेक क्षेत्र में कुछ ना जगह आरक्षित किये गये है। जो संविधान के अनुसार निर्धारित किया गया है। संविधान का अनुच्‍छेद 46 प्रावधान करता है, कि राज्‍य समाज के कमजोर वर्गों में शैक्षणिक और आर्थिक हितों विशेषत: अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का विशेष ध्‍यान रखेगा और उन्‍हें सामाजिक अन्‍याय एवं सभी प्रकार के शोषण से संरक्षित रखेगा। शैक्षणिक संस्‍थानों में आरक्षण का प्रावधान अनुच्‍छेद 15(4) में किया गया है जबकि पदों एवं सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान संविधान के अनुच्‍छेद 16(4), 16(4क) और 16(4ख) में किया गया है। 



विभिन्‍न क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के हितों एवं अधिकारों को संरक्षण एवं उन्‍नत करने के लिए संविधान में कुछ अन्‍य प्रावधान भी समाविष्‍ट किए गए हैं, जिससे कि वह राष्‍ट्र की मुख्‍य धारा से जुड़ने में समर्थ हो सके।केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित उच्च शिक्षा संस्थानों में उपलब्ध सीटों में से 22.5% अनुसूचित जाति (दलित) और अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) के छात्रों के लिए आरक्षित हैं| जिसमें से अनुसूचित जातियों के लिए 15%, अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5% है|  ओबीसी के लिए अतिरिक्त 27% आरक्षण को शामिल करके आरक्षण का यह प्रतिशत 49.5% तक बढ़ा दिया गया है| महिलाओं को ग्राम पंचायत और नगर निगम चुनावों में 33% आरक्षण प्राप्त है। बिहार जैसे राज्य में ग्राम पंचायत में महिलओं को 50% आरक्षण प्राप्त है|



भारत में आरक्षण की शुरूआत ।

भारत मे आरक्षण की सुरुआत आजादी से पहले ही मानी जाती है।  क्योंकि उस समय देश के कुछ समाज सुधारक ने अलग अलग जगहों पर गरीबों और समाज के निचले तबके के लोगों के लिये निसुल्क शिक्षा,और उनके अधिकारों के लिये ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ आन्दोलन की थी। जिसमें उनकी अलग अलग मांगे थी। जैसे प्रतेक नागरिकों के लिए अनिवार्य शिक्षा, देश  के मुल निवासियों को सरकारी नौकरी  आदी की मांग की गई थी। 


और जब भारत आजाद हुआ तो संविधान में उनलोगों के लिये अधिकारों की बात कही गई। उन्हें अलग अलग क्षेत्रों में आरक्षित कर उनके जगह को सुनिश्चित करने की कोशिश की गई। उन्हे शिक्षा से लेकर राजनीति में भी आरक्षित किये गये। और बाद मे अलग अलग सरकार के द्वारा  आरक्षण को बढाया भी गया। जिसके लिये संविधान में अलग अलग संसोधन किये गये है।


आरक्षण पर बहस किसलिए?

अब एक बड़ा सबाल यह आता है कि आरक्षण बहस का मुद्दा क्यों हो गया है। तो मेरे समझ से जनता के पास कुछ प्रश्न है जिसके जबाब अभी तक ना तो किसी सरकार ने देने की कोशिश की है और ना ही संविधान में इसका जिक्र है। जैसे की आरक्षण की आवश्कता क्या किसी खास वर्ग के लोगों को है। अगर नहीं तो समाज के ऐसे लोगो जिन्हें इसकी जरुरत है मगर उस खास वर्ग में ना होने के कारण बंचित क्यों है। 


सरकार का कहना है कि उसने उनके लिये 10%की अतिरिक्त आरक्षण की व्यवस्था की है। फ़िर भी यह सबाल आता है की समाज के ऐसे लोग जिन्हें आरक्षण मिल रहा है, वो कब तक इसका लाभ उठाते रहेंगे। जबकि वे विकास की मुख्य धारा से जुड़ चुके है। किसी व्यक्ति को एक ही वजह के लिए कितना आरक्षण मिलेगा। और भी अन्य सबाल है जिसका उत्तर हर कोई खोज रहा है मगर सरकार अपनी सता के लोभ मे शांत है।



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