Sunday, 10 October 2021

मरीन ड्राइव रायपुर छत्तीसगढ़


 मरीन ड्राइव सुनने के बाद हमें मुंबई के समुद्र तट का ध्यान आता है। लेकिन हम जिस मरीन ड्राइव की बात कर रहे हैं। वो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बीच में स्थित है। वास्तविक रूप से यह एक तालाब है जिसे पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए तथा इसकी सुंदरता को और बढ़ाने के लिए इसके भौतिक स्वरूप और इससे सटे  भू-भाग को योजनाबद्ध तरीके से सुशोभित किया गया है। इस तालाब का नाम तेलीबांधा है।जो कि43 एकड़ में फैला हुआ हैं। तालाब के चारों ओर बने भौतिक परिदृश्य जिस पर छत्तीसगढ़ की संस्कृति,सभ्यता से जुड़ी विभिन्न कलाकृतियां का चित्रण किया गया है।


 





ये कलाकृतियां वहाँ के स्थानीय कलाकारों के द्वारा विकसित किया है जो तालाब के सुन्दरता को ना सिर्फ़ चार चांद लगाने का कार्य करते हैं बल्की वो कलाकृतियां छत्तीसगढ़ की संस्कृति, सभ्यताओं, और परंपराओं का प्रचार-प्रसार भी करते हैं।  




तालाब के किनारे किनारे पगडंडियों का होना, छोटे छोटे पेड़ पौधों, तालाब में मछलियों का झुरमुट, तालाब के  एक किनारे पर बत्तखों का झुंड आदि इसके सुन्दरता को और भी मनोहर करती है, तालाब के किनारे किनारे लगे खंभे जिसमें लाइट लगी हुई है, उसी खम्भों में एक खंभे में भारत का पांचवां सबसे बड़ा झंडा लहरा लहरा कर मानों कह रहा हो कि यह देश अपने आप मे विविधताओं का ऐसा संगम है जहाँ इसकी कोई जानकारी नहीं होती की कौन कहा से आया है क्योंकि सब की पहचान तो एक ही है, सबका सर तो सिर्फ़ तिरंगा के सामने झुकता है। आश्चर्यजनक आर्ट गैलरी, फोटोग्राफी  स्पॉट,  विभिन्न प्रकार के स्थानीय और बाहरी व्यंजनों का स्टाल, सुबह और शाम को यह घूमने का जगह, शहर के बीच में शांति और स्थिरता जैसे इसकी पर्याय बन चुकी हो ।




अगर आप अपने को रोक नहीं पा रहे है और इस सुंदर परिदृश्य का अनुभव करना चाहते हैं तो यहाँ के वातावरण को महसूस कर चुके लोगों की सुनें। जिनका मानना है कि सर्दियों में मौसम सुहाना होता है, और गर्मी में अधिक गर्मी होने के कारण आप सूर्यास्त के समय जब मन्द मन्द पवन अपनी गति से विचरण कर रही होती है तो आप भी इसका आनंद ले सकते हैं। 



शहर के बीचोबीच  स्थिति होने के कारण यहाँ परिवहन को तकलीफ नहीं महसूस होती, इसलिए छत्तीसगढ़ के अन्य पर्यटन स्थलों में सबसे ज्यादा पसंद मरीन ड्राईव को ही किया जाता है।



हालांकि इतनी प्रचलित होने के वाबजूद कुछ कुछ परेशानियां समान्य तौर पर देखने को मिल ही जाता है।  लेकिन ऐसे परेशानियों को नकारा जा सकता है । छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग इसकी सुंदरता को बढ़ाने के प्रयासरत रहता है।  जिसका अनुभव आप यहाँ जा कर सकते हैं। कुल मिलाकर यह स्थान आपके जिंदगी के कशमकश को दूर करने के पर्याप्त है जिसका आप अनुभव कर सकते हैं ।



Sunday, 3 October 2021

जनता के परेशानियों का समाधान किसके पास?



पिछले लगभग 11 महीनों से चल रहे कृषि कानून के विरोध में दिल्ली के सीमा  गाजीपुर, सिंधु, और टिकरी बार्डर धरना प्रदर्शन अब भी सवालों के घेरे में हैं। इस आंदोलन को लेकर लोगों की अलग अलग राय है। ऐसे में आम जनता को हो रही परेशानी का समाधान कौन करेगा?क्योंकि इस आंदोलन से ना सिर्फ़ किसान नेता सवालों के घेरे में हैं बल्की अलग अलग राजनेताओं और सरकार भी अलग अलग सवालों के जवाब देने में असहाय महसूस कर रहे हैं। आम जनता को रहीं इस परेशानी का समाधान करने में किसी तरह की जल्दीबाजी दिखाई नहीं दे रही।


 सरकार कह रहीं है कि कृषि कानून में किसी तरह का कोई भी ऐसा निर्णय नहीं लिया गया है जिसमें आम कृषक को किसी तरह का कोई दिक्कत हो बल्की इस कानून के सहारे कृषक अब और भी अधिक सबल हो सकेगा।  मगर फिर भी अगर किसानों को लगता है कि कानून में संशोधन या बदलाव की जरूरत है तो हम एक साथ मिलकर इसका समाधान करेंगे।  लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि वो सरकार से बात करना तो चाहती है मगर उनका मकसद कानून में किसी भी तरह का समझौते करने से नहीं है बल्कि हमारी माँग है कि अगर सरकार चाहती है कि इस आंदोलन को खत्म किया जाए तो यह सिर्फ़ तभी संभव है जब सरकार इस कानून को वापस ले ले।  हमारी बात भी सरकार से तब होगी जब वो कानून वापसी पर सहमत होगी।  तो वहीँ दूसरे ओर 


इस कानून या फ़िर आंदोलन के लिए सुप्रिम कोर्ट भी किसी तरह की कोई टिप्पणी नहीं कर रहा।  जबकि उसकी जिम्मेदारी बनती है कि देश में इतने लंबे समय से चल रहे इस आंदोलन को लेकर प्रदर्शक और सरकार के बीच में मध्यस्थता करे। क्योंकि जब सरकार या प्रदर्शनकारी किसी भी निर्णय को लेकर एकमत नहीं हो रहे हैं तो इसका समाधान करना सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी हो जाती है। गौरतलब है सरकार और किसान संगठनों के बीच मध्यस्थता स्थापित करने करने के लिए सुप्रिम कोर्ट ने जिस कमिटि का गठन किया था उसके फ़ैसले को मनाने से ये किसान संगठन पहले ही नकारा चुके है। उपर से इनका कहना कहना है कि उन्हें आन्दोलन करने और धरना प्रदर्शन के राजधानी के अंदर भी स्थान चाहिए जिसको सुप्रिम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आपने शहर का गला घोट दिया है और आप अब अंदर भी घुसना  चाहते हैं। 



लेकिन जैसे जैसे दिन ढलता जा रहा है ,आंदोलन कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है खास कर 26 जनवरी 2021 के घटनाओं के बाद । कुछ किसान संगठनों के द्वारा आंदोलन से मुँह मोर लेना।अलग अलग राज्यों का दौरा कर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से समर्थन प्राप्त करने की कोशिश करना। अपनी बातों के जरिए मीडिया और सरकार का ध्यान अपनी तरफ खींचने का प्रयास करना यह बताता है कि यह आंदोलन अब कमजोर पड़ रहा है। 


तो हम यह भी देख सकते हैं कि कैसे किसान संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा आने वाले  पंजाब, उत्तरप्रदेश,आम चुनाव परोक्ष रूप से काफ़ी अधिक सक्रीय भूमिका निभाई जा रहीं है। ऐसे में आम लोगों के मन में जो सबाल है ,वो यह संकेत कर रहीं है कि क्या यह आंदोलन सिर्फ लोकप्रियता और सरकार के सामने शक्ति प्रदर्शन का जरिया है, असली मकसद तो आम चुनाव है? यह संदेह तब और यकीन में बदलने लगती है जब हम यह देखते हैं कि कृषि कानून का विरोध भी सिर्फ़ कुछ चिन्हित राज्यों में किया जा रहा है।जबकि यह कानून पूरे देश के लिए लागू की गई  है।

Saturday, 2 October 2021

2 अक्टूबर: शास्त्री और गाँधी जयन्ती!





 आज है 2 अक्टूबर का दिन, 

आज का दिन है बड़ा महान। 

आज के दिन दो फुल खिले थे, 

जिनसे महका हिन्दुस्तान।।

फिल्म परिवार का यह गाना अपने जमाने में बड़ा मशहूर था। देशभक्ति कार्यक्रम हो,कोई सरकारी कार्यक्रम हो या फिर बच्चों के जन्म दिवस पर यह गाना बजता ही था। गाँव क़स्बे, शहर आदि के गली मुहल्ले,चौक चौराहे पर हमेशा सुना जा सकता था।मगर आज यह गीत एक आम गीत बन कर रह गया है। मेरा ऐसा कहना इसलिए सार्थक है क्योंकि इस गीत में जिन दो व्यक्तियों की चर्चा की गई है ,उनमें से एक तो पूरा विश्व और देश के कोने-कोने में लोकप्रियता हासिल है मगर दूसरे व्यक्ति के जानता हर कोई है मगर स्मरण बहुत कम लोगों को ही रहता है। आप मे से कई लोग हमारा विरोध भी करेंगे मगर बात हकीकत की हो तो आपको भी शायद ही याद हो।

 

राह चलते किसी मुसाफिर से, स्कूल और सरकारी कार्यालयों में, भिन्न-भिन्न जगहों पर किसी भी व्यक्ति से अगर पूछा जाए कि 2 अक्टूबर को क्या है? तो सीधा जबाब होता है।  महात्मा गाँधी का जन्म दिवस है 2 अक्टूबर को।  इक्के दुक्के लोग ही होते हैं जिन्हें याद होता है कि देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का जन्म भी 2 अक्टूबर को ही हुआ था। 


कुछ लोगों का यह भी कहना होता है कि देश के राष्ट्रपिता के सम्मान में अगर किसी प्रधानमंत्री के जन्म दिवस स्मरण नहीं रह सका तो इसमे कौन सी बड़ी बात हो गई? और काफ़ी हद तक सही भी है, जब आप एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हो इसकी निर्णय करना,की आपको क्या करना है? क्या नहीं करना चाहिए? आप किसके समर्थक हो?आदि बहुत सारे सवालों का जवाब आपके पास खुद होता है जिसका निर्णय आप लेते हो। लेकिन एक के समर्थक होने के कारण या फिर एक लोकप्रियता के कारण अगर आप प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई ऐसा  निर्णय लेते हो जिसकी वास्तविकता लोकप्रियता के नीचे दब गयी हो तो वह  दिखावे के अलावे कुछ नहीं हो सकता। और ऐसे ही लोग देश के सभ्यताओं, संस्कृति, लोगों की कृतियों को धूमिल करते है। और दूसरे लोगों को विवश करते है कि वो देश की अस्मिता पर उंगली उठाये।


 क्योंकि अगर गाँधी ने देश को आज़ादी दिलाने के लिए अपना योगदान दिया है तो आज़ादी के संघर्ष से लेकर आज़ादी के बाद तक देश को एकजुट करने का श्रेय लालबहादुर शास्त्री को भी जाता है। आज़ादी के बाद जब भारत बिखरा पड़ा था। लोग जाती धर्म, संप्रदाय, समुदाय आदि के नाम पर एक दूसरे से लड़ रहे थे। आंतरिक स्थिति देख कर दुश्मन देश की सीमाओं पर ताक लगाए बैठा था। 


 देश भुखमरी से परेशान था। भारत अलग अलग अंतरराष्ट्रीय कर्जों में डूबा हुआ था। ऐसे विषम परिस्थितियों में देश को जिस नेतृत्व की जरूरत थी उसे पूरा लालबहादुर शास्त्री ने किया था। चाहे राष्ट्रीय स्तर पर देश में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, बाजार, सीमा सुरक्षा, ऊर्जा, कृषि,आदि को एक सिरे से सुव्यवस्थित करना हो या अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर देश की मर्यादा, गौरव और भारतीयता के प्रति लोगों के मन में सम्मान की भावना जागृत करना हो गुदड़ी का यह लाल कभी पीछे नहीं हटा।


 इनके शासनकाल में भारत ने उस ऊँचाइयों को छुआ है जहाँ खड़े होकर आज हम विश्व को उसकी औकात से रूबरू करवा रहे है। इनकी प्रोफेशनल और पर्सनल जिंदगी में किसी भी प्रकार का कोई अन्तर नहीं होना और सदा जिवन जीने की शैली के साथ साथ देशभक्ति का जो जुनून इनके अंदर था वो बातें आज इन्हें अमर कर दिया है। भले ही हम आप इसको भूलने को तत्पर हो मगर इतिहास कभी मिटता नहीं है। मातृभूमि के रक्षा के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाला भारत माँ का यह सपूत महज अपने जन्मदिवस को उत्सव के रूप में मनाने का समर्थक कतई नहीं रहा होगा।  मगर हमारा कर्तव्य बनता है कि हम ऐसे महापुरुषों को जन्मदिवस के उपलक्ष्य में ही सही मगर याद जरूर रखें।

संपादकीय विचार (Editorial Opinion)

केंद्र सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष में, इस बार 5 लोगों को भारतरत्न देने की घोषणा की हैं। केंद्र के इस घोषणा के बाद जहां विपक्...