पिछले लगभग 11 महीनों से चल रहे कृषि कानून के विरोध में दिल्ली के सीमा गाजीपुर, सिंधु, और टिकरी बार्डर धरना प्रदर्शन अब भी सवालों के घेरे में हैं। इस आंदोलन को लेकर लोगों की अलग अलग राय है। ऐसे में आम जनता को हो रही परेशानी का समाधान कौन करेगा?क्योंकि इस आंदोलन से ना सिर्फ़ किसान नेता सवालों के घेरे में हैं बल्की अलग अलग राजनेताओं और सरकार भी अलग अलग सवालों के जवाब देने में असहाय महसूस कर रहे हैं। आम जनता को रहीं इस परेशानी का समाधान करने में किसी तरह की जल्दीबाजी दिखाई नहीं दे रही।
सरकार कह रहीं है कि कृषि कानून में किसी तरह का कोई भी ऐसा निर्णय नहीं लिया गया है जिसमें आम कृषक को किसी तरह का कोई दिक्कत हो बल्की इस कानून के सहारे कृषक अब और भी अधिक सबल हो सकेगा। मगर फिर भी अगर किसानों को लगता है कि कानून में संशोधन या बदलाव की जरूरत है तो हम एक साथ मिलकर इसका समाधान करेंगे। लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि वो सरकार से बात करना तो चाहती है मगर उनका मकसद कानून में किसी भी तरह का समझौते करने से नहीं है बल्कि हमारी माँग है कि अगर सरकार चाहती है कि इस आंदोलन को खत्म किया जाए तो यह सिर्फ़ तभी संभव है जब सरकार इस कानून को वापस ले ले। हमारी बात भी सरकार से तब होगी जब वो कानून वापसी पर सहमत होगी। तो वहीँ दूसरे ओर
इस कानून या फ़िर आंदोलन के लिए सुप्रिम कोर्ट भी किसी तरह की कोई टिप्पणी नहीं कर रहा। जबकि उसकी जिम्मेदारी बनती है कि देश में इतने लंबे समय से चल रहे इस आंदोलन को लेकर प्रदर्शक और सरकार के बीच में मध्यस्थता करे। क्योंकि जब सरकार या प्रदर्शनकारी किसी भी निर्णय को लेकर एकमत नहीं हो रहे हैं तो इसका समाधान करना सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी हो जाती है। गौरतलब है सरकार और किसान संगठनों के बीच मध्यस्थता स्थापित करने करने के लिए सुप्रिम कोर्ट ने जिस कमिटि का गठन किया था उसके फ़ैसले को मनाने से ये किसान संगठन पहले ही नकारा चुके है। उपर से इनका कहना कहना है कि उन्हें आन्दोलन करने और धरना प्रदर्शन के राजधानी के अंदर भी स्थान चाहिए जिसको सुप्रिम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आपने शहर का गला घोट दिया है और आप अब अंदर भी घुसना चाहते हैं।
लेकिन जैसे जैसे दिन ढलता जा रहा है ,आंदोलन कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है खास कर 26 जनवरी 2021 के घटनाओं के बाद । कुछ किसान संगठनों के द्वारा आंदोलन से मुँह मोर लेना।अलग अलग राज्यों का दौरा कर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से समर्थन प्राप्त करने की कोशिश करना। अपनी बातों के जरिए मीडिया और सरकार का ध्यान अपनी तरफ खींचने का प्रयास करना यह बताता है कि यह आंदोलन अब कमजोर पड़ रहा है।
तो हम यह भी देख सकते हैं कि कैसे किसान संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा आने वाले पंजाब, उत्तरप्रदेश,आम चुनाव परोक्ष रूप से काफ़ी अधिक सक्रीय भूमिका निभाई जा रहीं है। ऐसे में आम लोगों के मन में जो सबाल है ,वो यह संकेत कर रहीं है कि क्या यह आंदोलन सिर्फ लोकप्रियता और सरकार के सामने शक्ति प्रदर्शन का जरिया है, असली मकसद तो आम चुनाव है? यह संदेह तब और यकीन में बदलने लगती है जब हम यह देखते हैं कि कृषि कानून का विरोध भी सिर्फ़ कुछ चिन्हित राज्यों में किया जा रहा है।जबकि यह कानून पूरे देश के लिए लागू की गई है।
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