Saturday, 18 March 2023

वैश्विक मंच पर शक्तिशाली होती हिन्दी।

                                                                                               




हिन्दी साहित्य के बहुत कम लेखक हुए जिन्हे विश्वपटल पर वो मुकाम हासिल हुई जो की अन्य भाषा साहित्य के लेखकों को मिली है । लेकिन पिछले दिनों एक के बाद एक अंतरराष्ट्रिय सम्मान से सम्मानित होने का अवसर हिन्दी के लेखकों को मिलना ,इस भाषा के लिए गौरव की बात है। मेरा ऐसा कहना, शायद इस भाषा की विरासत के लिए गुस्ताखी होगी, लेकिन आज आधुनिकरण के चलते जिस तरह इस भाषा की अपेक्षा हो रही है, उस हिसाब से यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। हालांकि इस बात को नकारा नहीं जा सकता की कोई भी सम्मान किसी भाषा की लोकप्रियता का आधार नहीं हो सकता और न ही है। आज भारत में हिन्दी बोलने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन बात इस भाषा की लोकप्रियता की नहीं बल्कि वैश्विक पहुँच की है। जिसमें यह भाषा कामयाब हो रही है। जिसका परिणाम है कि भाषा के लेखनी को वैश्विक पहचान मिल रही है। 


मार्च का यह महीना इस साहित्य के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया। जब अमेरिका की साहित्यिक संस्था पीईएन द्वारा प्रेस विज्ञप्ति मे जब यह घोषणा की गई कि हिन्दी के लेखकों में सबसे विशिष्ट और प्रतिष्ठित अंतरराष्टीय साहित्य सम्मान इस बार भारत के झोली में जा  रहा है।भारत के लिए  सबसे बड़ी बात यह की यह पहली बार आ रहा है। इससे पहले रेत समाधि के गीतांजलि श्री को बुकर , और फिर यह पीईएन सम्मान ,हिन्दी साहित्य के एक बड़ी उपलब्धि है जो आने वाले साहित्यकारों के लिए मिसाल बनेगी। श्री शुक्ल की पहली कविता साल 1971 में छपी थी और आज 52 सालों के बाद उन्हे अंतरराष्टीय स्तर के इस साहित्यिक सम्मान से सम्मानित किया जाना, यह दर्शाता है कि सफलता की कोई एक उम्र नहीं होती है। बस आपको तटस्थ रहना होता है।


अपनी सफलता पर शुक्ल कहते हैं कि मेरा लोकल होना ही ,मेरे वैश्वीक होने का प्रमाण है। और उनकी यह बात उनकी लेखनी में झलकती है। जो उन्हे इस सम्मान के लायक समझता है। ऐसी ही बातें पीईएन के जजों द्वारा भी कही गई। और हो भी क्यों नहीं, बात जब किसी प्राथमिक होने की हो, उसके पहचान की हो , तो मेरे समझ से इस बात की संभावना बहुत बढ़ जाती है, कि वो अपने आप से कितना जुड़ा है। और इस सम्मान से पहले से जो भी व्यक्ति, या पाठक श्री विनोद शुक्ल से राबता रखते हैं, उन्हे मेरे इस कथन से सायद कोई विशेष आपत्ति नहीं होंगी। क्योंकि किसी एक दौर में श्री शुल्क को समेट देना, उनकी लेखनी के साथ ज़्यादती होगी।


 आज जब हम सम्मान के कारण श्री शुल्क को इतने करीब से जानने की कोशिश कर रहें है, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए उनकी पहचान सिर्फ सिर्फ इसी सम्मान से नहीं है उनके साथ उनकी  पिछले 52 साल की लेखनी है। जो उनकी पहचान और समृद्ध करती है। ऐसे कितने नामी गुमनामी व्यक्तित्व है, जिनकी पहचान आज तक नेपथ्य में ही छिपी है। कारण जो भी हो लेकिन मंच के एक कोने में सीट उनकी भी पक्की होनी चाहिए ताकी हमारी यह भाषा और वैश्विक पटल पर और समृद्ध दिखे।  

 

बात जब वैश्विक और लोकल होने की है तो हमे खुद से पूछना चाहिए कि हम किस श्रेणी में आतें है? यह विवाद इसलिए है क्योंकि अगर गिनती के कुछ लोगों को छोड़ दिया जाय तो हममें से सिर्फ गिनती के कुछ लोग ,गिनती के हिन्दी साहित्यकार को जानते है। जबकि हमरा संबंध ऐसे राष्ट से है जहाँ हिन्दी की विशालता है। इसके वावजूद इस भाषा में बोलने वाले , लिखने वाले, पढ़ने वाले , और समझने वालों की संख्या कुछ इतनी है कि किसी किताब मेले में , या किताब के दुकानों पर अक्सर उन्हे कल आने के लिए कहा जाता है। या फिर उनसे किताब के बदले कोई अन्य भाषा की किताब के लिए प्रेरित कर दिया जाता है। 


आपको याद होगा कि कैसे बुकर सम्मान ने रेत समाधि पुस्तक की लोकप्रियता बढ़ा दी। आज श्री शुल्क की भी लगभग वही दास्ताँ है। पीईएन की घोषणा के बाद जब श्री शुल्क से उनकी संघर्षों के किस्सों की बात पूछी गई, उनके शब्दों से यह हकीकत झांक रही थी। हद तो तब हुई जब एक पत्रकार ने उनसे उस कविता के बारे जानना चाहा जिसकी रचना उन्होंने की ही नहीं। ऐसे में दोष किसे दे ? क्योंकि ऐसा पहली बार तो नहीं था। इससे पहले रेत समाधि की भी यही मजबूरी थी, जिस किताब को सम्मान के वावजूद आलोचना झेलनी पड़ी। पाठकों की एक वर्ग ने उपन्यास के भाषा शैली पर प्रश्न उठाए। सवाल यह है कि हम अपनी विरासतों पर गर्व क्यों नहीं कर पा रहे। हमे  हमारी चीजों से कोई और क्यों वाकिफ करवा रहा? पिछले दिनों जब फिजी के नादी शहर में 12 वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित हुआ तो, कही न कही इसका मकसद इस भाषा को वैश्विक पहचान दिलाना था। और एक के बाद एक अंतरराष्टीय सम्मान यह साबित करती है कि हम कामयाब हो रहे है, लेकिन कामयाबी अभी बहुत दूर है। 



 


No comments:

Post a Comment

संपादकीय विचार (Editorial Opinion)

केंद्र सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष में, इस बार 5 लोगों को भारतरत्न देने की घोषणा की हैं। केंद्र के इस घोषणा के बाद जहां विपक्...