मंगलवार 2 जनवरी 2024 को केंद्र सरकार ने राजनैतिक दलों को चंदा देने के लिए जारी होने वाले इलेक्टोरल बॉन्ड की 30वीं किश्त को मंजूरी दे दी। इसकी बिक्री 11जनवरी तक चलेगी। वित्त मंत्रालय के बयान के मुताबिक यह एसबीआई के 29 ब्रांच में बेचे जाएंगे। जिसे कोई भी नागरिक या कंपनी खरीदकर किसी भी पार्टी को चंदे के में दे सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2 नवंबर को इस पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इसकी जरूरत क्या है? कोर्ट ने इससे संबंधित अन्य सभी जानकारी के लिए चुनाव आयोग से फंडिंग की जानकारी मांगी है
इस लेख में हम जानते है, आखिर क्या होता है? यह इलेक्टोरल बॉन्ड...
इलेक्टोरल बॉन्ड को आसान भाषा में समझें तो यह एक चुनावी बॉन्ड है। यह एक तरह का प्रोमिसरी या बैंक नोट है। जिसे कोई भी आम नागरिक या कंपनी खरीद कर अपने पसंदीदा राजनैतिक पार्टी को डोनेट कर सकता है। लेकिन बॉन्ड का उपयोग सिर्फ वही पार्टी कर सकती है जिसे पिछले चुनाव में कम से कम 1% वोट हासिल हुआ है। इसे कोई भी नागरीक बैंक के निश्चित शाखा से खरीद कर गुमनाम तरीके से अपने पसंदीदा राजनैतिक दलों को दान कर सकता है.
भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. उसके बाद फिर 29 जनवरी 2018 को क़ानूनन इसे लागू कर दिया था. जिसके तहत भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को पैसा देने के लिए बॉन्ड जारी करता है. जिसे कोई आम नागरीक या कंपनी ख़रीद सकता है. ब़ॉन्ड खरीदने के लिए खरीदार के पास एक ऐसा बैंक खाता होना चाहिए, जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हैं. गौरतलब है कि इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है. इसलिए इसमें पैसे की श्रोत का प्रमाण निश्चित नहीं होता है.
भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे जा सकते हैं.जिस बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है इस दौरान इसका इस्तेमाल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता हैं. यह जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए ख़रीद के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं. लेकीन लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी इसे जारी किया जा सकता है.
कई बड़ी संस्थाओ ने इसे गलत बताया है
सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर कहा कि इसके जरिए काले धन को सफेद किया जा सकता है। ऐसे में इस अवसर का लाभ उठा कर विदेशी कंपनियां सरकार और राजनीति को प्रभावित कर सकते है। इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर चुनाव आयोग का पक्ष भी बॉन्ड और सरकार के साथ नहीं है। आयोग का कहना है कि इसमें चंदा देने वालों का नाम गुमनाम रखा जाता है। ऐसे में इस बात का पता नही लगाया जा सकता है, या यह कहे की इसका पता लगाना मुश्किल है कि राजनीतिक दल ने धारा (29बी) का उलंघन किया है या नहीं किया। विदेश से मिलने वाली चंदा की भी ठीक ठीक जानकारी नहीं हो पाएगी। सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की तरह आरबीआई का भी मानना है कि यह ब्लैक मनी, मनी लॉन्डरिंग, आदि को बढ़ावा देगा.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
2017 में भारत सरकार ने इस योजना की शुरुआत किया। सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कहा की यह कदम देश में राजनीतिक फ़ंडिंग की व्यवस्था को साफ़ कर देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ पिछले कुछ सालों सालों में ऐसे कई मामले आए जब इसको लेकर सवाल उठाया गया। इसको लेकर कहा गया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी जाती इसलिए इससे काले धन की आमद को बढ़ावा मिल रहा है। सरकार पर यह आरोप लगा की सरकार को बड़े उद्योगपति से मिलने वाली चंदे को उजागर नहीं करना पड़े इसलिए कॉर्पोरेट घरानों को उनकी पहचान बताए बिना पैसे दान करने में मदद करने के लिए ऐसे व्यवस्था बनाई गई है. मामले को लकेर सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं भी दायर की गई हैं. पहली याचिका साल 2017 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और ग़ैर-लाभकारी संगठन कॉमन कॉज़ द्वारा संयुक्त रूप से दायर की गई जबकी दूसरी याचिका साल 2018 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने दायर की. फिलहाल याचिका पर सुनवाई कोर्ट में लंबित है।
किस पार्टी को कितना मिला
चुनाव निगरानी संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2016-17 और 2021-22 के बीच पांच वर्षों में कुल सात राष्ट्रीय दलों और 24 क्षेत्रीय दलों को इस इलेक्टोरल बॉण्ड से कुल 9,188 करोड़ रुपये चंदे के रूप में मिले. जिसमें सबसे ज्यादा चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला। जारी आँकड़ों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी को 5272 करोड़ रुपये यानी कुल इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए दिए गए चंदे का क़रीब 58 फ़ीसदी मिला. और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को इलेक्टोरल बॉन्ड से क़रीब 952 करोड़ रुपये तो तृणमूल कांग्रेस को 767 करोड़ रुपये प्राप्त हुए. गौर करने बात है कि वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2021-22 के बीच राष्ट्रीय पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये मिलने वाले चंदे में करीब 743 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई. जबकि दौरान कॉर्पोरेट चंदा केवल 48 फ़ीसदी बढ़ा. इन पांच सालों में से वर्ष 2019-20 में सबसे ज़्यादा 3,439 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये आया. 2021-22 में क़रीब 2,664 करोड़ रुपये का चंदा मिला. दूसरी बातें जो गौर करने वाली है वो ये कि वर्ष 2019 -20 में लोकसभा के चुनाव हुए जबकि 2021-22 में कई राज्यों में विधान सभा के चुनाव हुए थे।
कुल मिलाकर देखें तो यह व्यवस्था एक ऐसी रणनीति का हिस्सा है जिस का सबसे अधिक फाइदा सत्ता में बैठी पार्टी को होता है,आकंडे भी यही कहते है। ऐसे में इस में कुछ बदलाव की जरूरत है। जिसके आधार पर इस व्यवस्था को और मजबूत बनाया जा सकता है।
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