कहते हैं, कि किसी का विकास उस के समय,परिवेश,
परिस्तिथि, और सँस्कृति के आधार पर होता है। इसमें कुछ अपवाद हो सकते हैं, मगर बहुत
कम देखा गया है कि ऐसे अपवाद मिलें हो। और जब हम साहित्य की बात करते हैं तो यह समझना
और आसान हो जाता है कि इसका प्रादुर्भाव और विकास कब और कैसे हुआ है। क्योंकि इसका
आधार तो सामाजिक बदलाव माना गया है। जिसका एक मात्र कारण दोनो का एक दूसरे का पूरक
होना है। और अगर भारतीय साहित्य की बात की जाए तो इसको नाकार नहीं जा सकता है कि इसका
प्रादुर्भाव और विकास भारतीय सँस्कृति के अनुरुप हूआ है। क्योंकि यह किसी खास व्यक्ति,भाषा,या
प्रांत का समर्थन या आलोचना नहीं करता। बल्कि यह भारत के जर्रे जर्रे को जोड़कर अपनी
एक अलग तस्वीर वयां करता है,जो इसके मूल
स्वरूप से काफ़ी अलग संरचना है। जिसकी विशालता समुद्र से भी बड़ा है। भारत के
अलग-अलग समाज के अलग-अलग सँस्कृति, रहन सहन ,खान पान,भाषा,आदि का सम्मिलित स्वरुप है।
इस साहित्य पर सामजिक विखंडन का दुस्प्राभव
भी पड़ता है तो सामजिक अखंडता का सतप्रभाव भी
पड़ता है। हिमालय से लेकर कन्या कुमारी तक और ब्रह्मपुत्र की घाटियाँ से सिंधु तक सामाजिक,धार्मिक, राजनैतिक, भाषाई
विविधताओं के बावजूद आपसी एकता भारतीय साहित्य को एक अलग पहचान देती है,जो इसके अलग
अलग सँस्कृति,सभ्यता,खान पान, रहन सहन,धार्मिक स्वतंत्रता, वैचारिक मतभेद आदी का समावेश
इसकी कल्पना और हकीक़त को एक नया स्वरुप प्रदान करता है। जँहा….
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद् दुख भागभवेत।
की अमृत वर्षा सदा ही होती रहती है और यँहा का ज़र्रा ज़र्रा ना सिर्फ़ अपनी ब्लकि
विश्व कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहता है और अपने हालातों के अनुसार
अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देता है ।अपने अतीत के पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए चलने के कारण आज आर्थिक,समाजिक रूप से शक्तिशाली ना होते हुयें भी,विश्व
इसकी वन्दना करता है। और शायद इन्हीं सब कारणों के कारण आज यह देश अपनी गौरवपूर्ण इतिहास,
एवं एक विकसित और समृद्ध भविष्य के परिकल्पना में अपना वर्तमान जि रहा है।अपने भौगोलिक
बनावट के कारण सँस्कृति और लौकिक विषमताओं की मज़बूरी के बावजूद अपनी अनंत विस्तार
की परिकल्पना को संजोए हुए धार्मिक,राजनैतिक,और सामाजिक अखंडता के अलग-अलग धाराओं को
सांस्कृतिक संगम प्रदान कर रही है।
साहित्यिक परिचय और इसका विभाजन !!!
अगर हम भारतीय साहित्य की बात करतें
हैं तो यँहा भी हमें भाषाई , सामजिक,और लौकिक विषमता देखने को मिलता है। जँहा हमें
इसके अलग अलग आध्याय को जानना होगा। जिसका एक मात्र कारण यह है कि यह साहित्य भारत
के अलग-अलग विधा,भाषा,समाज, सभ्यता, सँस्कृति, भौगोलिक स्वरुप,को प्रतिविंबीत करता
है।अगर हम किसी भी एक पहलू को नजरअंदाज करते हैं तो यह भारतीय साहित्य की पूर्ण जानकारी
नहीं हो सकती। इस साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि इसका प्रादुर्भाव अलग-अलग साहित्यिक
कृतियों के अपभ्रंश के समावेश से हुआ है। और इसकी पहचान इसके अलावा इसके अलग-अलग लौकिक,साहित्यिक
विविधता, वैदिक सभ्यता,और क्षेत्रीय प्रभाव के कारण भी विकसित
हुई है। उदाहरण के तौर पर हम इसके अलग-अलग स्वरुप को देख सकते हैं। चाहे वह वैदिक काल
हो या आधुनिक काल, साहित्यिक कृतियाँ अपने अंदर सामजिक और धार्मिक वातावरण को अपने
पन्नों में समाहित किये हुए विश्व को
आईना दिखाने के लिए प्रतिबद्ध थी और है। महाकाव्य,पुराण,वेद,सूत्र और स्मृतियों,समाजिक
परिस्तिथि, इतिहास, शिक्षा, प्रकृति आदी को अलग-अलग भाषाओं में नाट्य,गध्य ,पध्य के
रुप में साहित्यकारों ने सामज के अलग-अलग हिस्सों को कभी उदाहरण के तौर पर तो कभी वर्तमानस्थिति
के रुप में ऐसे पेश किया
है कि वास्तविकताओं कल्पनाओं के बीच अंतर कर पाना पाठकों के लिए
आसान नहीं होगा। अपने कलम की स्याही को इस कदर मजबूर कर दिया की वर्तमान, अतीत
और भविष्य के परिस्तिथियों का सजीव चित्रांकन प्रस्तुत करें।जिसके फलस्वरूप आज सामजिक
वर्गीकरण का एक आधार साहित्य को भी माना जा रहा है। जिसमें अलग-अलग भौगोलिक परिवेश
के बहुभाषी कवि,लेखकों,ने सिर्फ़ समाज के सभी वर्गों के रहन सहन,खान पान,को अपने दर्शन,भक्ति,कविता,
नाटक, कहानी के रूप में प्रस्तुत किया और आज यह रचनाएँ ग्रंथ,उपनिषद,महाकाव्य, काव्य,उपन्यास, आदी में
तब्दील हो गए। और इसे ही आज भारतीय साहित्य की सामाजिक, राजनैतिक,और धार्मिक दर्शन
का आधार माना जाने लगा है।कहा जाता है कि भाषा और विचारधारा के समावेश से साहित्य का
निर्माण होता है। और कोई भी विचारधारा या भाषा किसी विशेष पृवति या किसी विशेष सामाजिक
कारण से प्रभावित होता है। परिणामस्वरूप यह सामज को भी प्रभावित करता है और फ़िर इसमें
साहित्यिक परिवर्तन देखने को मिलता है। जिसका कारण यह है कि साहित्य सामाजिक घटनाएं
और परिकल्पनाओं का आधार बिन्दु है। ऐसे में अगर किसी निश्चित
समय में कोई ऐसा कवि और लेखक जो अपने कलम की ताकत से समाज के वर्तमान और भविष्य को
बदलने की ताकत रखता है या बदलता है तो उस दौर के साहित्य में भी परिवर्तन देखने को
मिलता है जिसके अनेक उदाहरण है।और यही परिवर्तन भारतीय साहित्य
को लोकप्रिय बनाने का काम किया है। जो की इसके विकसित होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।
क्योंकि ऐसा कहा जाता है ना कि अगर किसी में बदलाव हो रहा तो उसका विकास हो रहा है।
लेकिन इस बदलाव का यह मतलब नहीं है की आप अपनी सँस्कृति को ही भुल जाय। जो की इस सहित्य
में हमे आसानी से देखने को नहीं मिलता है कि अपने आरंभ से लेकर
आज तक यह साहित्य अपने मुल को भुला हो। हालांकि इसकी उत्पति जिस
से हूई है उसमें से कुछ तो सिर्फ़ नाम के लिए रह गए हैं। फ़िर भी इस की लोकप्रियता कम
नहीं हुई। अलग-अलग समय में अलग-अलग रचनाएँ जो समाज के वर्तमानस्थिति के प्रतिकूल थे,
उसमें बदलाव लाना इस साहित्य को प्रस्तुत करने का एक अलग प्रयास था जिसमें इसके लेखक
और कवियों ने सफलता हासिल की। इस साहित्य के शैलियों में बदलाव की आवश्यकता इसलिये
भी जरुरी थी क्योंकि विविधताओं के कारण किसी एक भाषा या विचारधाराओं
के प्रति लोगों का झुकाव असंभव हो सकता था। हालांकि यह झुकाव अब भी नहीं हो पा रहा
जब की हम इतनें विकसित हो चुके हैं और आधुनिकीकरण में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने
के लिए कदम उठा रहें हैं। ऐसे में यह झुकाव तब कैसे संभव हो सकता था। और अध्ययन की
सुबिधा,साहित्यिक समझ,और सबसे बड़ी बात इस साहित्य के विकास के लिए इसका विभाजन किया
गया। और चुकी एक ही समय में समाज में अलग-अलग परिवर्तन हुयें है इसलिए साहित्य का विभाजन
भी समय और परिस्तिथि के अनुसार हुआ है। जिसका आधार ऐतिहासिक काल,सासन काल,एवं साहित्यकारों
के साहित्यिक रचनाओं और उसमें परिवर्तन के आधार पर किया गया। जिसमें आदिकाल
से आधुनिक काल,एलिज़ाबेथ से मराठा युग,और फ़िर भारतेंदु, प्रसाद,पंत, आदि के अनुसार
भी विभाजन देखने को मिलता है। प्रेमचंद के आने से हिंदी साहित्य को एक अलग लोकप्रियता
मिली। ठिक उसी तरह से अलग-अलग राजनेताओं, सामाज सुधारकों ने भी साहित्यिक विभाजन में
अपना अपना योगदान दिया। जिसका आधार सामाजिक, रास्ट्रीय,और सांस्कृतिक आन्दोलन था। और
अलग-अलग समय में अलग-अलग पहलुओं के कारण साहित्य में इतनें बदलाव देखने को मिला की
साहित्यिक विभाजन भी साहित्य के विभाजन का आधार बना।
.........अगले अंक में ...
https://gautamjha912.blogspot.com/2021/11/2.html
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